
छोटे बच्चे क्यों बीमार होते रहते हैं? वे बोझ उठाते हैं।
मौलाना (क़) के वास्तविकताओं से, जैसा कि शेख़ नूरजान मीरअहमदी ने सिखाया है।
पनाह माँगता हूँ मैं अल्लाह की शैतान मर्दूद से
शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
अलहमदूलिल्लाहिर रब्बिल आलमीन व सलातू व सलाम अश्राफ़िल मूसलीमीन साय्यिदिना व मौलाना मुहम्मद उल मुस्तफ़ा ﷺ बी मददाकुम अन नज़रकुम साय्यिदि या रसूलूल करीम। अतिउल्लाह व अतिउर रसूल व ऊलिल अमरे मिनकुम।
﴾ياأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُواللَّه وَأَطِيعُوٱلرَّسُولَ وَأُوْلِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ…﴿٥٩
4:59 – “Ya ayyu hal latheena amanoo Atiullaha wa atiur Rasula wa Ulil amre minkum…” (Surat An-Nisa)
“ऐ ईमान लाने वालो, अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल का कहना मानो और उनका भी कहना मानो जो तुममें अधिकारी लोग हैं …” (सूरत अन-निसा, ४:५९)
और हमेशा की तरह मेरे ख़ुद के लिए एक अनुस्मारक, अना अब्दूकल ‘आजिज़, व दाईफ , व मिसकीन, व ज़ालिम, व जहल, और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की कृपा से हम अभी भी अस्तित्व में हैं।
ऊर्जा: दावाह (धार्मिक प्रचार) का आम विभाजक।
यह समझ की हम जिस शैली में पढ़ा रहे हैं वह ऊर्जा पर आधारित है। दावाह के लिए वह सबसे आसान और आम विभाजक है। जब आप सलाह (प्रार्थना), ज़काह (दान पुण्य) – इन सभी शर्तों के बारे में बात करते हैं, तो हम बहुत से लोगों को खो सकते हैं। वे धार्मिक प्रथाओं के सभी नियमों के बारे में सोचते हैं और अलहमदुलिल्लह, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) पैग़म्बर ﷺ को प्रेरित करते हैं की वे औलियाल्लाह (संतो) को इशारात (संकेत) दें, और जो औलियाल्लाह के तहत प्रशिक्षित हैं दावाह करने और सिखाने में, वे देते हैं इल्म ए लदूनी व हिकमती बिस सालिहीन (दिव्य ज्ञान और धर्मी बुद्धिमानी)
﴾فَوَجَدَا عَبْدًا مِّنْ عِبَادِنَا آتَيْنَاهُ رَحْمَةً مِّنْ عِندِنَا وَعَلَّمْنَاهُ مِن لَّدُنَّا عِلْمًا ﴿٦٥
18:65 – “Fawajada ‘abdan min ‘ibadinaa ataynahu rahmatan min ‘indina wa ‘allamnahu mil ladunna ‘ilma.” (Surat Al-Kahf)
“फिर उन्होंने हमारे बन्दों में से एक बन्दे को पाया, जिसे हमने अपने पास से दयालुता प्रदान की थी और जिसे अपने पास से [अगोचर/स्वर्गीय] ज्ञान प्रदान किया था…” (सूरत अल -कहफ़, १८:६५ )
औलीयल्लाह अपने दिलों में साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ से दिया गया ज्ञान का ख़ज़ाना लेकर चलते हैं।
दो नदियाँ जो बह रही हैं उन्मे इस ज्ञान की नदी का होना ज़रूरी है, “इल्म ए लदूनी” वे लोग किताब नहीं दोहरा रहे हैं क्योंकि उस किताब का आपको क्या फ़ायदा जो मैंने नहीं लिखी हो। यदि मैं अपनी किताब से दोहरा रहा हूँ तो वह ज्ञान अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने मुझे एक अमानत के तौर पर हमारे दिल में दिया है जो साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के अमानत और ख़ज़ाने से है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) उस ज्ञान के कारण प्रमाणित करता है, उस सेवक को “हिकमती सालिहीन” से प्रमाणित करता है। वे स्पष्ट रूप से सालिहीन (धर्मी) हैं और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उन्हें हिकमाह (बुद्धिमानी) दी है कि किस तरह उस ज्ञान का उपयोग करें और वह ज्ञान अलग-अलग तरीक़ों से फिर से प्रकट होता रहता है।
﴾يُؤْتِي الْحِكْمَةَ مَن يَشَاءُ ۚ وَمَن يُؤْتَ الْحِكْمَةَ فَقَدْ أُوتِيَ خَيْرًا كَثِيرًا ۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّا أُولُو الْأَلْبَابِ ﴿٢٦٩
2:269 – “Yu’til Hikmata mai yasha o; wa mai yutal Hikmata faqad otiya khairan kaseeraa; wa maa yazzakkaru illaa ulul albaab.” (Surat Al-Baqarah)
“वह जिसको चाहता है हिकमत अता फ़रमाता है और जिसको हिकमत अता की गई तो इसमें शक नहीं कि उसे ख़ूबियों से बड़ी दौलत हाथ लगी और बाब/अक़्लमंदो के सिवा कोई नसीहत मानता ही नहीं।” (सूरत अल-बक़रा, २:२६९)
आप जानते हैं कि जो नक्शबंदिया चमत्कारी हक़ीक़त है वह सुल्तान उल औलिया मौलाना शेख़ अब्दुल्लाह फ़ैज़ अद-दाग़ेस्तानी (क़), सुल्तान उल औलिया शेख़ मुहम्मद नाज़िम हक़्क़ानी (क़), मौलन शेख़ मुहम्मद आदिल (क़), मौलाना शेख़ हिशाम कब्बानी (क़), शेख़ अदनान कब्बानी (क़), के दिल से है। ये बूज़्ज़ुर्गान हैं, ये इस तरीक़ाह (धार्मिक पथ) में ये बड़े औलिया हैं, ये ख़ुद एक चमत्कार हैं। वे वास्तविकता लेते हैं और इसे अलग अलग तरीक़ों से फ़्लिप करते रहते हैं ताकि यह हर समय और हर पल के लिए लागू हो।
अपनी शपथ मत तोड़ो – यह आपकी आत्मा के लिए हानिकारक है ।
हमें ऊर्जा के स्तर से यह समझना है कि अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें सूरत अल-फथा, ४८ सुरा में सिखा रहा है की बायाह (निष्ठा) कहाँ से आ रहा है। जो इस शपथ को तोड़ता है, इसे अपने ही नुक़सान के लिए तोड़ता है।
﴾إِنَّ الَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ اللَّـهَ يَدُ اللَّـهِ فَوْقَ أَيْدِيهِمْ ۚ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَىٰ نَفْسِهِ ۖ وَمَنْ أَوْفَىٰ بِمَا عَاهَدَ عَلَيْهُ اللَّـهَ فَسَيُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا ﴿١٠
48:10 – “Innal ladheena yubayi’oonaka innama yubayi’on Allaha yadullahi fawqa aydeehim, faman nakatha fa innama yankuthu ‘ala nafsihi, wa man awfa bima ‘ahada ‘alayhu Allaha fasayu teehi ajran ‘azheema.” (Surat Al-Fath)
“बेशक, जो लोग आपसे बायाह (प्रतिज्ञा निष्ठा) करते हैं, [ओ मुहम्मद] – वे वास्तव में खुदा से बायाह (प्रतिज्ञा निष्ठा) करते हैं। अल्लाह का हाथ उनके हाथों पर है। तो, जो कोई इस अहद/शपथ को तोड़ेगा, तो अपने हानि/नुक़सान/घाटे, के लिए तोड़ेगा। और जिसने उस प्रण (बायाह) को जिसका उसने खुदा से अहद किया है पूरा किया तो उसको अनक़रीब ही अज्रे अज़ीम अता फ़रमाएगा।” (अल फ़तह, ४८:१०)
और लोग सोच सकते हैं कि, “आप क्या कह रहे हो?” यदि आप प्रकाश की दुनिया से नहीं सोच रहे हो तो आप कहते हो, ‘ओह! मैं एक शपथ तोड़ा हूँ और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) मुझे चेतावनी देगा कि मेरी आत्मा अब ख़तरे में है। मैंने सोचा शायद शपथ का मतलब है ज़िक्र (ईश्वर की याद) में जाना और वहाँ इस शेख़ से पढ़ना और ऐसा करना और वैसा करना।’ आपके दिमाग को यह समझ नहीं आता है क्योंकि अगर आप रूप की दुनिया से सोच रहे हैं कि, ‘आपकी आत्मा को यह कैसे प्रभावित कर सकता है?’
अत्माएं प्रशिक्षित सैनिक हैं जो स्वर्गीय क्षेत्र में एकत्रित होती हैं।
तो, कल रात उन्होंने आपको इसका वर्णन दिया था। नहीं, नहीं, नहीं, इस दुनिया का आपके रूप से कोई लेना देना नहीं है। औलियाल्लाह की इस संगति और उनके मार्गदर्शन का आपके रूप से बहुत कम लेना देना है। वे मवेशियों को इकट्ठा नहीं कर रहे हैं और उन्हें एक दिशा में झुंडने की कोशिश नहीं कर रहे हैं और सभी का रूप अलग अलग दिशा में भाग रहा है। पर उनकी आत्मा नहीं। आपका शरीर जहाँ चाहे दौड़ सकता है पर आपकी आत्मा प्रकाश की दुनिया में उनके साथ है। जब अल्लाह(अज़्ज़ व जल) ने उस वास्तविकता को विभाजित किया, पैग़म्बर ﷺ ने आत्माओं की दुनिया को “उंस,” ‘परिचित’ की तरह वर्णित किया है। वे सेना की तरह हैं, वे परिचितों के समूहों में इकट्ठा होते हैं। क्यों? क्योंकि वह समूह, वे उस मलकूत (स्वर्गीय क्षेत्र) में हैं, उस वास्तविकता में हैं, और वहीं पर शिक्षण हो रहा है।
عَنْ أَبِيِ هُرَيْرَةَ) رَضِيَ الله عَنّهُ( ، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ ﷺ قَالَ “اَلأَرْوَاحُ جُنُودٌ مُجَنَّدَةٌ، فَمَا تَعَارَفَ مِنْهَا إئْتَلَفَ، وَمَا تَنَاكَرَ مِنْهَا إِخْتَلَفَ” [صَحِيِح ْمُسْلِمْ ٢٦٣٨]
‘An ‘Abi Huraira (ra), ‘anna Rasulallahi ﷺ qala: “Al arwahu jonudun mujannadatun, fama ta’arafa minha eytalafa, wa ma tanakara minha ekhtalafa.” (Sahih Muslim 2638)
अबू हुरैरा (र आ) ने सूचना दी कि, अल्लाह के नबी ﷺ ने फ़रमाया,” आत्माएँ एक साथ एकत्रित सैनिक हैं और जो एक दूसरे से परिचित हैं (स्वर्ग में जहाँ से वे आते हैं) एक दूसरे के साथ आत्मीयता/निकटता होगी (इस दुनिया में), और जो एक दूसरे से अनजान हैं (स्वर्ग में ) वे भी भिन्न होंगे (इस दुनिया में)।” [सही मुस्लिम, २६३८]
मार्गदर्शन अनुमति देता है, वे शिक्षण शुरू करते हैं, वे अत्माएं अब संगत हैं उन शेखों के साथ और फिर उनके प्रतिनिधियों के साथ विभाजित हैं, और उनके परतिनिधि, और उनके परतिनिधि। इसका रूप की दुनिया से बहुत कम लेना देना है। तो अल्लाज (अज़्ज़ व जल) हमें चेतावनी दे रहा है कि जब आप अपनी शपथ तोड़ते हैं तो यह आपकी आत्मा की हानि के लिए होता है और इसकी एक समझ है ऊर्जा की समझ।
नकारात्मकता बच्चों की सकारात्मक दिव्य वास्तविकता को आकर्षित करती है।
जब बच्चे पैदा होते हैं और छोटे होते हैं तो वे अभी सीधे जन्नत से आए हैं। वे लदे हुए हैं, लदे हुए हैं स्वर्गीय प्रकाश और स्वर्गीय शक्ति से। शैतान बच्चों को क्यों नुकसान पहुंचाते हैं? वह इसलिए कि उस दिव्य प्रकाश के कारण और उस दिव्य वास्तविकता के कारण उस प्रकाश की पवित्रता और उस ऊर्जा की पवित्रता के कारण। अगर वे हीरे और मानिक की तरह होते हैं तो जब तक वे बड़े हो जाते हैं वे कोयला बन जाते हैं क्योंकि दुनिया (भौतिक दुनिया) का प्रभाव होने लगता है। आप जानते हैं कि जब ये पैदा होते हैं तो उनके पैर स्वर्ग की तरह होते हैं। उनकी अपनी ख़ुद की सुगंध होती है। आप बच्चे के तलवे को चूमते हैं, तो आप जन्नत को चूम रहे हैं, क्योंकि वह अभी वहाँ चल कर आया है। वह बच्चा उस हक़ीक़त में घूम रहा था। जैसे ही वे बड़े होते हैं उनके पैर से भयानक गंध आती है। क्यों? अब क्योंकि बुरा चरित्र अंदर आ रहा है और दुनिया इसे अब प्रभावित कर रही है। इसका मतलब यह है कि, ऊर्जा की समझ से, ये बच्चे जब छोटे होते हैं तो वे पवित्र होते हैं।
और स्कूल में सिर्फ़ बुनियादी विज्ञान आपको सकारात्मक (पॉजिटिव) और नकारात्मक (नेगेटिव) सिखाता है। तो, हमें पेचीदा इस्लामिक शब्द देने की ज़रूरत नहीं है; यह है सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा। हर समय हमारे जीवन में हमें सोचना है कि कौन है पॉज़िटिव, अधिक पॉज़िटिव और कौन है नेगेटिव और आप की विज्ञान की कक्षा में नेगेटिव ऊर्जा कहाँ जाती थी? नकारात्मक हमेशा ख़ुद को सकारात्मक चार्ज से जोड़ता है और कोई भी सकारात्मक चार्ज वाली वस्तु नकारात्मक चार्ज एकत्र करती है क्योंकि दूसरा सकारात्मक चार्ज इसे पीछे हटाता है। पॉज़िटिव और पॉज़िटिव साथ नहीं आते; पोज़िटिव और पोज़िटिव साथ नहीं आते। सही है ना? तो, इसलिए दो शेख़ एक ही क्षेत्र में नहीं बैठते। वे एक दूसरे को पीछे हटाते हैं।
औलिया में होती है नकारात्मक ऊर्जा को खींचने की शक्ति।
लेकिन शेख़ छात्रों के साथ बैठते हैं क्योंकि वे [छात्र] नकारात्मकता से भरे होते हैं और वे इसे खिंचते रहते हैं, वे खिंच रहे हैं उनकी नकारात्मकता और फेंक रहे हैं उनकी उस नकारात्मक हक़ीक़त, भौतिक या जो कुछ भी, औलियाल्लाह की उस वास्तविकता में ।मैं नहीं, मैं तो सिर्फ़ एक गधा हूँ और छवि में ठीक यहाँ दो शेख़ होने चाहिए [शेख़ स्क्रीन पर छवियों की तरफ़ इशारा करते हैं, शेख़ नाज़िम (क़) और शेख़ अब्दुल्लाह फ़ैज़ अद-दग़ेस्तानी (क़) स्क्रीन के दाईं और बाईं ओर पर] ये बहुत शक्तिशाली शेख़ हैं। यदि मैं इन्हें सर पर रखूँ, तो लोग कहते हैं, ‘अपने यहाँ क्यों रखा है?’ या फिर आप उन्हें यहाँ रखते हो, तो वे पूछते हैं, ‘अपने ऐसा क्यों रखा है?’ आप किसी को भी ख़ुश नहीं कर सकते लेकिन इस प्रसारण पर आपको इन दो शेखों के चेहरे पर ध्यान देना चाहिए। उनके पास अपार शक्ति है। तो, इसका मतलब है कि सकारात्मक ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है।
बच्चे के जीवन के पहले ४० दिन एकांत के होते हैं।
जब बच्चे का जन्म होता हैं और वे छोटे होते हैं तो हर मेहमान आकर बच्चे को चूमता है इससे वे उन्हें बीमार कर सकते हैं। हर बार जब वे उसे छूते हैं, वह बच्चा उन लोगों की नकारात्मक ऊर्जा लेता है। इस कारण जब वे पैदा होते हैं पहले ४० दिन उनको कोई नहीं देखना चाहिए; वह एकांतवास में है। वह अभी दिव्य उपस्थिति और गर्भ के ख़लवा (एकांत) से आया है और वह अब ४० दिन तक ख़लवा करेगा इस धरती पर ताकि वह अपने आप को रद्दोबदल और सीध करे। कम से कम उस बच्चे या बच्ची को लोगों से सुरक्षित समय तो दो। वे नहीं आते, वे नहीं चुंबन करते, बच्चे के होठों पर और चेहरे के चारों ओर कभी नहीं चूमना चाहिए; यह सबकी ऊर्जा बच्चे पर जाती है। जब हमें ऊर्जा की यह समझ होती है तो हमें हदीस का हवाला या आयतुल क़ुरान (पवित्र क़ुरान से छंद) का हवाला देने की ज़रूरत नहीं होती है; यह सब क़ुद्रा (शक्ति) की समझ में है। तो फिर वे ऊर्जा को जज़्ब कर लेते हैं।
शेख़ आपकी और आपके परिवार की नकारात्मकता को खिंच कर समाप्त करते है।
तो, एक अनुस्मारक कि, जब आप ज़िक्र (दिव्य याद) पर आते हो और जब अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें संगति में रहने के लिए नियत करता है चाहे हम ख़ुद उस जगह हों या लाइव प्रसारण के माध्यम से, बायाह सभी नेगेटिविटी को खींच रहा है। नेगेटिविटी को खिंचने के नतीजे से घर में और उस परिवार पर जो भी सामूहिक नेगेटिविटी है, और जो भी तरिक़ाह को देख रहा है या भाग ले रहा है, वे उस नेगेटिविटी को खींच कर ला रहा हैं और अब शेख़ इस नेगेटिविटी से निपटते हैं। सिर्फ़ शुद्ध पॉजिटिव चार्ज नेगेटिव चार्ज को खींचता है।
इसलिए, जब आप तरिक़ाह में शामिल होते हैं और जब आप इन संघों में शामिल होते हैं और जब आप किसी शेख़ का, एक वास्तविक शेख़ का अनुसरण कर रहे हैं, तो यह सारा बोझ आप से खेंचा जा रहा है और आप अपने बच्चों को स्वस्थ होता पाते हैं, क्योंकि वे अब आपके घर में बोझ नहीं उठा रहे हैं। यह इसलिए कि वे घर में सबसे अधिक पॉजिटिव चार्ज हैं। वे शुद्ध हैं, वे मज़लूम (मासूम) हैं, उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं किया है। यदि आप संघ में नहीं हैं तो कई बार ये बोझ उठाते हैं इसलिए लोग अपने बच्चों को बीमार पाते हैं। क्योंकि लोग बाहर जाते हैं और जो चाहें करते हैं उनकी बीमारी घर में आती है और उनका हलक़ा (घेरा) वही है जो उनके घर में है और उनका बोझ उनके बच्चों पर फेंका जा रहा हैं। जैसे जैसे वे बढ़ते हैं तो हर एक अपना बोझ अपने आप पर और दूसरों पर डालते हैं। उनके बोझ आगे-पीछे होते रहते हैं। तो हम पॉजिटिव और नेगेटिव चार्ज की समझ में प्रशिक्षित होने लगते हैं। इसलिए, जब मैं शेख़ के साथ हूँ और तरीक़ाह में हूँ वे मेरा कूड़ा-कचरा खिंच रहे हैं। तो, वे कूड़ा संग्राहक हैं; वे उसे खिंचते हैं, उन्हें कैसे प्रशिक्षित किया गया है वे उस तरह उस बोझ को उठाते हैं और उसे निपटाते हैं।
आपके बच्चे और परिवार बोझ उठाएंगे यदि आप जीवन रेखा को तोड़ते हैं।
इसलिए, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) चेतावनी दे रहा है, ‘इसे मत तोड़ो यह आपकी आत्मा के लिए हानिकारक है क्योंकि अब आप अपना बोझ खुद उठाएंगे।’ आप तोड़ते हैं और कहते हैं ‘मैं इसमें भाग नहीं लूँगा। मैं उनके साथ नहीं बैठूँगा। मैं नहीं देखूंगा।’ कोई मसला नहीं है, पर सावधान रहें कि अब आप उस ऊर्जा को ला रहे हैं और वह अब आपके घर रह रही है और घर में बस रही है और घूम रही है। इसका नतीजा यह है कि वह उस घर में सबसे जो मासूम हैं उनके पास जाने लगती है और वो होते हैं बच्चे। वे बीमार होने लगते हैं; वे यह बोझ उठाने लगते हैं जिसे पहले उस घर से फेंका जा रहा था वह अब घर में फैल रही है।
इसलिए आप देखते हैं कि, जो लोग तरीक़ाह से नाता तोड़ते हैं उन्हें बहुत मुश्किलें, कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । तो उन्होंने सीखा कि, जीवन रेखा से नाता नहीं तोड़ना चाहिए। वे जब बड़े होते हैं तब बात अलग होती है। तब परीक्षण आता है और सबकी अपनी क़ब्र है, हर बच्चे की अपनी क़ब्र है जब वे १७, १८ वर्ष के होते हैं। आप किसी को ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते जिसे आप जीना चाहते थे। वह कुछ अलग है, वे वही चुनते हैं जो कुछ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उनके भाग्य में लिखा है। लेकिन हम उन बच्चों की बात कर रहे हैं जो नाबालिग के रूप में हमारी हिफ़ाज़त में हैं। हम जब ऐसे फ़ैसले लेते हैं तो नकारात्मकता उन्हें प्रभावित करने लगती है। तो, सिर्फ़ एक स्तर पर अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें वर्णन दे रहा है कि कैसे लोगों पर से बहुत कठिनाइयां दूर की जाती है, और कितनी सारी रोशनी लोगों पर छा जाती है। जब आप वह चार्ज काट देते हैं और वह संबंध तोड़ देते हैं तब यह नकारात्मकता आपके वातावरण में घूमती रहती है और बच्चे सबसे पहले इस मुश्किल से प्रभावित होते हैं।
आप पर इकट्ठी की हुई ऊर्जा कई रूप में प्रकट होती है।
हम जब पॉजिटिव और नेगेटिव को समझते हैं तो हमारे पास खुद बहुत से जवाब हैं और आपको अब बार बार शेख़ से पूछने की ज़रूरत नहीं है। ‘क्या मुझे यहाँ जाना चाहिए या क्या मुझे वहाँ जाना चाहिए? क्या मैं यह करूं या मैं वह करूं?’ तो, फिर वे कहेंगे पॉजिटिव चार्ज कहाँ है? यदि आपकी प्रथा सही है और आप नेगेटिव चार्ज के माहौल में जाने की योजना कर रहे हैं तो आपका उत्तर पहले से ही स्पष्ट है। आपको इस्लामिक फ़तवा (निर्णय) की ज़रूरत नहीं है, आपको समझने की ज़रूरत नहीं है कि क्या हलाल (जायज़) है और क्या हराम (माना किया हुआ) है। बस सिर्फ़ इतना कहें, ‘अगर मैं वहाँ जाता हूँ तो वहाँ बहुत नेगेटिव चार्ज होगा। मैं सब पॉजिटिव प्रथा कर रहा हूँ और होली मोलि वे मुझे आशीर्वाद देंगे।
सारी नकारात्मकता अचानक मुझ पर आने वाली है। तो, आप हैरान मत हो जब आप ग़ुस्से में घर जाते हैं, या आप उत्तेजित होकर घर जाते हैं, या आप बहुत बिगड़ कर घर जाते हैं। जो ऊर्जा आप अपने आप पर इकट्ठि करते हैं वह कई रूप में प्रकट होती है। सबसे आश्चर्यजनक और ग़ज़ब की बात यह है कि लोग इसे समझ नहीं पाते। यदि आप एक नकारात्मक चार्ज उठाते है, तो ऊर्जा एक ऐसी चीज़ है कि, अगर मैं इसे बल्ब में भेजता हूँ तो वह प्रकाश बनाएगी। मैं अगर टीवी की ओर ऊर्जा का चार्ज भेजता हूँ तो यह एक तस्वीर बनाएगी। मैं अगर रेडीओ की ओर ऊर्जा का चार्ज भेजता हूँ तो वह ध्वनि लाएगी। ऊर्जा कई रूप में प्रकट होती है।
नकारात्मक चार्ज को संभालने के लिए आपको सकारात्मक प्रथाओं में प्रशिक्षित होना चाहिए।
इसलिय, जब वे बात करते हैं कि आप नकारात्मक चार्ज उठाते हैं तो आप थोड़े से पगला जाते हैं और आप समझ नहीं पाते हैं क्यों। तो, जब भी आपके प्रथाएं मजबूत हैं और आप बाहर जाते हैं, और ऐसे वातावरण में जाते हैं जहाँ नेगेटिविटी है, तो आप अजीब विचारों, हर प्रकार के अजीब भावनाओं को और सभी प्रकार के अजीब विशेषताओं को महसूस करते हुए वापस आते हैं। क्यों? इसलिए कि आपके अंदर की ये उर्जाएं अब प्रकट हो रही है और आप सिर्फ़ एक लाइट बल्ब की तरह हो। वह नहीं जानता कि स्विच ऑन करें, चीखे, चिल्लाए, या कुछ बुरा करें।
इससे पता यह चलता है कि, एक, आप अभी तक प्रशिक्षित नहीं हैं कि कैसे आप अपने अवराद (दैनिक अभ्यास) करें, और कैसे आपका ज़िक्र करें, ताकि ये ऊर्जाएं आपको प्रभावित न करें और आप अपने ज़िक्र के माध्यम से उसे संसाधित करें। आप अपने स्नान के माध्यम से समझ सकते हैं कि, ‘मुझ पर जो दुनिया का असर है मुझे उसे स्नान कर के साफ़ करना है।’ आप मॉल को जाते हैं और वहाँ से ऊर्जा उठाते है, और आप घर लौट कर चीख़ते और चिल्लाते हैं और सब पर ग़ुस्सा करते हैं – आप पगला जाते हैं। आपकी ऊर्जा प्रकट हो रही है और आपको पता नहीं कि उससे कैसे निबटे। आपको प्रशिक्षित होना होता है, आप अपना ज़िक्र करें, आप अपने दैनिक प्रथा करें, आप जाकर स्नान करें यदि आप महसूस करते हैं कि कुछ सही या शांत नहीं था उस ऊर्जा के बारे में। और भावनाएँ – जब कोई गंभीर रूप से उदास होता है तो उन पर वह एक बड़ी नकारात्मक ऊर्जा होती है। जब आप उनसे मिलते हैं और घर जाते हैं तो आप कहते हैं, ‘मुझे पता नहीं मैं क्यों इतना उदास महसूस कर रहा हूँ।’
आप अपने भाई और बहन के लिए दर्पण होंगे।
हम बड़े रूहानी प्राणी हैं। आप पारदर्शी हो जाते हैं, आप एक दर्पण की तरह बन जाते हैं जहाँ पैग़म्बर ﷺ ने कहा है, ‘आप अपने भाई और बहन के लिए, और एक ईमान लाने वाले के लिए दर्पण होंगे।’
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : “اَلْمُؤْمِنُ مِرْآةُ الْمُؤْمِنِ
‘An Abi Hurrairah (ra), qala, qala Rasulullahi (saws) “Al mu’min miratal mu’min.”
‘अबू हुरैरा (र आ) ने बताया कि, अल्लाह के पैग़म्बर ﷺ ने फ़रमाया है, “मोमिन मोमिन का दर्पण है।”
इसका मतलब है कि, अगर विश्वास की रोशनी आपके दिल में आ रही है, तो आप लोगों के लिए दर्पण होंगे। यदि लोग उदास हैं वे आप पर फेकेंगे और आप घर उदास लौटेंगे। लेकिन शेखों को अवसाद में काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, वे अपना ज़िक्र करते हैं अपना इस्तिग़फ़ार (क्षमा मांगना) करते हैं, सब्र करते हैं जब तक अल्लाह (अज़्ज़ व जल) इस ऊर्जा से उन्हें मुक्त नहीं कर देता और वे इस तरह सफाई कर रहे हैं। लेकिन वे इसकी तलाश नहीं कर रहे हैं और ना ही वे इसे चाहते हैं। यदि अल्लाह (अज़्ज़ व जल) उसे भेजता है तो वे उसे भेजते हैं, लेकिन हम ऊर्जा के लोग हैं। जितना अधिक हम इसे समझते हैं तो फिर हम प्रयत्न करते है कि हम भड़के नहीं और कोशिश करते हैं कि जैसे ही हम बाहर जाते हैं तो लोगों से झगड़ा नहीं करें और बाहर दुनिया में घूम कर लौटने के बाद लोगों से झगड़ा नहीं करें।
एक ही क्रिया के विभिन्न परिणाम नहीं मिलते।
मेरा मतलब है, आप जानते हैं वे पागलपन का क्या वर्णन करते हैं, जैसे आप सड़क को पार कर रहे हैं और आपकी गाड़ी से टक्कर होती है और अगले दिन आप कहते हैं, ‘मैं सड़क फिर पार करूँगा।’ आपकी गाड़ी से फिर टक्कर होती है। आप कहते हैं, ‘मैं जा कर सड़क फिर पार करूँगा।’ तब डॉक्टर आकर आपसे कहता है, ‘आप पागल हैं, तकनीकी रूप से आप पागल हैं।’ पूछा, ‘क्यों?’ उसने कहा, ‘इसलिए कि आप वही काम करते हैं और हर बार आप अलग परिणाम की उम्मीद कर रहे हैं। यदि आप सड़क पार कर रहे हैं, और आपकी टक्कर होती है, तो आप सड़क मत पार करें। आप कहीं और जा रहे होंगे इसे करने के लिए।’ इसलिए हर बार आप जब बाहर जाते हैं तो वापस आकर ग़ुस्सा करना चाहते हैं। हर बार जब आप लोगों से बातचीत करते हैं तो आप क्रोधित होना चाहते हैं। यह सोचा-समझा व्यवहार नहीं है, यह तरिकाह की रीति नहीं है और इसलिए वे ऊर्जा की शिक्षा के साथ सब कुछ सरल कर देते हैं।
इस्तिग़फ़ार (क्षमा मांगो) के ज़िक्र से नकारात्मकता को धो डालो।
अगर हम वास्तव में ऊर्जा को समझ गए हैं, तो हम समझते हैं कि हम इसे कैसे एकत्र कर रहे हैं, इसका निपटान कैसे करें। हमारा ज़िक्र दिन भर के लिए इन ऊर्जाओं के लिए है इस्तेग़फ़ार, “अस्तघ्फिरुल्लाहल अज़ीम, व अतुबू इलैक।” एक हज़ार से, दस हज़ार, “अस्तघ्फिरुल्लाहल ‘अज़ीम, व अतुबू इलैक” इसलिए कि इस्तिग़फ़ार नकारात्मकता को धो डालता है। इस्तिग़फ़ार नकारात्मकता को धोता है, वह ‘अस्तघ्फिरुल्लाहल ‘अज़ीम’ या रब्बी बी सिफ़्फ़त अल-’अज़ीम (शोभमान की विशेषता) जो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के पराक्रम और महिमा के क़रीब कुछ भी नहीं आने देता, इसे मिटा देता है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम (शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।) की एक तज्जल्ली (ज़ाहिर करना) खोलता है, ‘मैं क्षमा करूंगा और धो डालूंगा उस कठिनाई को बिसमिल्लाहिर रहमानिर रहीम से।’ जब वे दिन भर इस्तिग़फ़ार पढ़ते है, तो दोपहर के मध्य तक वे स्विच करके साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की सुंदर सुगंध से सुगंधित होने के लिए माँगते हैं। यह इसलिए की नबी ﷺ को देखने से पहले आपको धोया गया है, आप नहीं आ सकते हैं वहाँ अपना मैला और पागल चरित्र लेकर।
इस ज़िक्र से अपनी ज़ुबान को सुंदर और सुगंधित करो।
इसलिए, इस्तिग़फ़ार से धुलाई और सफ़ाई के बाद अब मैं तय्यार हूँ, “अल्लाहुम्मा सल्ली अला साय्यिदिना मुहम्मद व अला आली साय्यिदिना मुहम्मद” और वे सलवात (नबी मुहम्मद ﷺ पर प्रशंसा) साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ पर पढ़ते रहते हैं ताकि वे इस से सुंदर और सुगंधित हो जाएँ।ताकि उनकी ज़ुबान सुगंधित होती है साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के प्रेम से और नबी ﷺ की रिदा और संतुष्टि उनके दिल और आत्मा को आशीर्वाद देती है।
اَللَّهُمَ صَلِّ عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ، وَّعَلَى آلِ سَيِّدِنَا مُحَمَّدْ
“Allahumma salli ‘ala Sayyidina Muhammadin wa ‘ala aali Sayyidina Muhammad.”
“या अल्लाह! सलाम और रहमत नाज़िल अता फ़रमा मुहम्मद ﷺ पर और आल ए मुहम्मद ﷺ पर।”
हम प्रार्थना करते हैं कि अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें ऊर्जा की अधिक से अधिक समझ दें। फिर हम मूर्ख चुनाव नहीं करेंगे।शैतान (दुर्जन) जब हमसे खेलने आता है, तो आपको उस संगति से दूर रखने के लिए आता है चाहे वह उपस्थिति में हो या लाईव [प्रसारण] हो, वह हमें नुक़सान पहुँचा रहा है। वह आपको अपार रहमा (दया) से काट रहा है और आप पर और आपके घर और घरवालों पर भारी संकट डाल रहा है।
Subhana rabbika rabbal ‘izzati ‘amma yasifoon, wa salaamun ‘alal mursaleen, walhamdulillahi rabbil ‘aalameen. Bi hurmati Muhammad al-Mustafa wa bi siri Surat al-Fatiha.
इस सोहबाह का प्रतिलेखन करने में हमारे प्रतिलेखकों के लिए विशेष धन्यवाद।
सुहबा की मूल तारीख: अगस्त १४, २०२०
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