
अवसाद और चिंता को कैसे दूर किया जाए।
मौलाना (क़) के वास्तविकताओं से, जैसा कि शेख़ नूरजान मीरअहमदी ने सिखाया है।
A’udhu Billahi Minash Shaitanir Rajeem
Bismillahir Rahmanir Raheem
पनाह माँगता हूँ मैं अल्लाह की शैतान मर्दूद से,
शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
Atiullaha wa atiur Rasula wa Ulil amre minkum
﴾أَطِيعُواللَّه وَأَطِيعُوٱلرَّسُولَ وَأُوْلِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ… ﴿٥٩…
4:59 – “…Atiullaha wa atiur Rasula wa Ulil amre minkum…” (Surat An-Nisa)
“…अल्लाह की आज्ञा का पालन करो, और रसूल का कहना मानो और उनका भी कहना मानो जो तुम में अधिकारी लोग हैं…” (अन निसा, ४:५९)
अना अब्दुकल ‘आजीज़, व दायीफ, व मिसकीन व ज़ालिम व जहल, और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की कृपा से मैं अभी भी अस्तित्व में हूँ। हम कुछ भी नहीं हैं और यह कुछ भी नहीं होने का पथ हमें लेना है दिव्य उपस्थिति की ओर बढ़ने के लिए।
हम अपने शरीर का पोषण करते हैं पर क्या हम अपनी आत्मा को पोषित करते हैं?
हर बीमारी के लिए अल्लाह (अज़्ज़ व जल) एक उपाय और एक इलाज प्रदान करता है। हर चीज़ के लिए एक पोषण है, एक भोजन है। जैसे कि हम इस सांसारिक दुनिया में शरीर को खिलाने में व्यस्त हैं, कुछ लोग दूसरे की तुलना में अधिक खिलाते हैं, यही कारण है कि वे मोटे हैं। हम इस काम में अच्छे हैं।
लेकिन आत्मा के लिए एक पोषण है, और आत्मा इस शरीर के भीतर एक साथी है। यह शरीर केवल एक वाहन है लेकर चलने के लिए। ये आत्मा को लेकर चलता है; आत्मा वाहनचालक है और आत्मा को भरण-पोषण की आवश्यकता होती है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने पवित्र क़ुरान और अनेक पवित्र पुस्तकों के द्वारा नक़ातुल्लाह के बारे में कहा है, ईश्वर का ऊँट। उस ऊँटनी की कहानी जिसमें लोग और नबी सालेह (अलैहिस्सलाम) के पास एक ऊँटनी थी और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने कहा, “मैं इस ऊँटनी को भेजूंगा, लेकिन आप यह सुनिश्चित करेंगे कि आप इसे पानी तक पहुँचने देंगे।”
﴾وَإِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا ۗ قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّـهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَـٰهٍ غَيْرُهُ ۖ قَدْ جَاءَتْكُم بَيِّنَةٌ مِّن رَّبِّكُمْ ۖ هَـٰذِهِ نَاقَةُ اللَّـهِ لَكُمْ آيَةً ۖ فَذَرُوهَا تَأْكُلْ فِي أَرْضِ اللَّـهِ ۖ وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴿٧٣
7:73 – “Wa ila thamooda akhahum Salihan. Qala: ya qawmi ‘abudo Allaha malakum min ilahin ghayruhu. Qad ja atkum bayyinatunn mir Rabbikum, Hadhihi Naqatullahi lakum ayatan. Fadharoha takul fee ardi Allahi, wa la tamassoha biso in, faya khudhakum ‘adhabun aleem.” (Surah Al A’raf)
“और समूद की ओर (हमने) उनके भाई सालेह को भेजा। उसने कहा, “ए मेरी क़ौम के लोगों, अल्लाह की बन्दगी करो। उसके अतिरिक्त तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ चुका है। यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी है। अत: इसे छोड़ दो कि अल्लाह की धरती में खाए। और तकलीफ़ पहुँचाने के लिए इसे हाथ न लगाना, अन्यथा तुम्हें एक दुखद यातना आ लेगी।” (अल अराफ़, ७:७३)
यदि आत्मा को पोषित नहीं किया जाता है, तो वह शरीर पर भारी नुकसान डालती है।
हम उस पर चर्चा नहीं करेंगे, लेकिन यह वास्तविकता है मौलाना शेख़ (क़) के शिक्षण से कि, वह हमारी आत्मा है। हर बार इस प्र्थ्वी पर मनुष्य व्यस्त रहा है अपने शारीरिकता और शारीरिक इच्छाओं और चाह को खिलाने में। इसे अधिक से अधिक आवश्यकता होती है और मौलाना शेख़ (क़) इसे अतृप्त भूख के रूप में वर्णित करते हैं।
जितना भी हम इस शरीर की इच्छाओं को पूरा करते हैं, उतनी ही उसे ज़्यादा भूख होती है। आँखें भूकी होती हैं, वे अधिक से अधिक चाहती हैं। हर क्षितिज पर, यह अधिक सामग्री और अधिक उपभोग, अधिक भक्षण के नए क्षितिज चाहते है। और उस यात्री को जिसे हम भूल रहे हैं, वह आत्मा है। आत्मा एक ऊँट की तरह दूर तक जा सकती है, लेकिन समय के साथ अगर ऊँट और आत्मा को उसका भरण-पोषण नहीं मिलता है, तो यह शरीर पर भारी बोझ डालना शुरू करती सकती है। आत्मा एक प्रकाश है और उसे पोषण की आवश्यकता है।
हम सब केवल प्रकाश के टुकड़े हैं।
अब अलहमदुलिल्लाह, थोड़ा सा विज्ञान और भौतिकी के साथ आप प्रकाश की वास्तविकता को समझ गए हैं। आप के पास रूप है और यह रूप प्रकट हो रहा है क्योंकि वहाँ प्रकाश है – यह क्वांटम है। तो, अगर वहाँ रूप है, जब यह रूप प्रकट हो रहा है – यहाँ तक कि वैज्ञानिक भी अब आकर हमें सिखाते हैं कि, वहाँ एक प्रकाश होना चाहिए।
तो, वहाँ एक नूर है – वह प्रकाश दिखाई दे रहा है और आपका रूप प्रकट हो रहा है। उन्होंने फिर आगे बढ़ कर कहा कि अगर वहाँ प्रकाश है, तो उस प्रकाश का स्त्रोत ध्वनि होना चाहिए; उस प्रकाश को प्रकट होने के लिए एक ध्वनि होनी चाहिए क्योंकि वह प्रकाश ऊर्जा बना रहा है। ऊर्जा गतिमान है, प्रकाश दिखाई दे रहा है। इस प्रकाश के साथ आपका रूप है, इसलिए हम सब केवल इस प्रकाश के टुकड़े हैं। ये परमाणु तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं, जिससे एक रूप दिखाई देता है। वे इसे तोड़ते हैं और फिर वापस जाते हैं – यह एक ऊर्जा है। वह ऊर्जा ध्वनि द्वारा अस्तित्व में है।
शैतान हमें हमारी वास्तविकताओं से विचलित करता है हमें बीमार करने के लिए।
इसलिए, इस का मतलब यह है कि, जो अपनी आत्मा का पोषण नहीं करते हैं , वे अपनी ऊर्जा को पोषित नहीं कर रहे हैं और वे अपने प्रकाश को पोषित नहीं कर रहे हैं, शरीर पर डाली जाने वाली बीमारियों में से एक अवसाद (डिप्रेशन) और चिंता (ऐंज़ाइयटी) है। दुनिया में आजकल हर कोई डिप्रेशन और ऐंज़ाइयटी से ग्रस्त हैं। आप टीवी पर प्रमुख दवाओं को देखते हैं, तो आपको समझ में आता है कि लोगों पर क्या गुज़र रही है। वे इसका विज्ञापन करते हैं। वे इसे थोड़ा डॉक्टरों के कार्यालय में क्यों नहीं देते?
लेकिन जब ये इतना अधिक है कि वे लाखों लोगों और जनता के लिए विज्ञापन कर सकते हैं, क्योंकि शैतान जानता है कि जब वह हमें हमारी प्रकाश की वास्तविकता, हमारी आत्मा की वास्तविकता और हमारी ऊर्जा की वास्तविकता से विचलित करता है, लेकिन हमें केवल शरीर का भोजन देता है, तो उसे पता है कि वहाँ अवसाद और चिंता एक बीमारी बन कर आएगी। वह हमें दवाई देने की कोशिश करता है, कि आप यह दवाई लो अपना अवसाद दूर करने के लिए। पर वह आपका अवसाद दूर नहीं करता बल्कि वह आपको अपने अवसाद के बारे में सोचने की क्षमता छीन लेता है। यदि दवा तगड़ी है तो वह आपको सुस्त बना देगी जहाँ आप सोच नहीं सकते, बात नहीं कर सकते और ना ही कुछ कर पाते हैं और आपकी जीभ चिपकने लगती है। तो इसका मतलब यह है कि, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) इलाज का वर्णन दे रहा है कि, हर बीमारी का एक इलाज है। अवसाद (डिप्रेशन) और चिंता (ऐंज़ाइयटी) का इलाज आत्मा से जुड़ा है।
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ (رَضِيَ الله عَنّهُ) عَنِ النَّبِيِّ ﷺ قَالَ “ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ دَاءً إِلاَّ أَنْزَلَ لَهُ شِفَاءً ” – رَوَاهُ الْبُخَارِيُّ
‘An ‘Abi Huraira (ra), ‘anin Nabi ﷺ qala: “maa anzalallahu daa an illa anzala lahu shefa an.” [Rawahu al Bukhtari]
अबू हुरैरा (रदी अल्लाहु अन्ह) द्वारा सुनाई गई: नबी ﷺ ने कहा, “कोई बीमारी नहीं है जो अल्लाह ने बनाई है, सिवाय इसके कि उसने इसका उपाय/इलाज भी बनाया है।” [सही अल बुख़ारी ७६,५६७८]
हमारे आंतरिक स्वयं को ठीक करने से बाहरी पूर्णता प्रकट होगी।
हमारे इस जीवन में, हमारे व्यस्त जीवन में और इस दुनिया में वे सोच रहे हैं, “आप लोग इस क़ालीन पर क्यों इकट्ठा होते हैं और इतने लम्बे समय तक क्यों जप करते हैं?” यह वास्तव में भगवान की हम पर दया है जो हम यहाँ आते हैं, यह एक फार्मेसी की तरह है, एक स्वर्गीय फार्मेसी, स्वर्गीय डॉक्टरों की तरह। उनके साथ आप बैठो, आपको हर इलाज दिया जाएगा। लेकिन अंदर से इलाज, हम मानते हैं कि बाहर को सही करता है। बाहर के डॉकटर, वे सिर्फ़ बाहर की चीज़ को ठीक करते हैं। वे आपको देखते हैं और कहते हैं, “देखो, तुम्हें यह गुमड़ा है। तुम्हें इस दवा की ज़रूरत है।” अंदरूनी डाक्टर, वे समझ गए हैं कि अंदरूनी वास्तविकता को ठीक करने की ज़रूरत है। जब अंदर ठीक हो जाता है, तो आपको बाहर पूर्णता दिखाई देती है।
दिव्य उपस्थिति की प्रशंसा करके अपनी आत्मा को पोषित करो।
तो, इसका मतलब यह है कि, जो अवसाद और चिंता की बीमारी है वह जप और आत्मा के पोषण से दूर होती है। जितना हम अधिक जाप कर सकते हैं, जितना अधिक हम चिंतन कर सकते हैं, साँस की ऊर्जा लाते हैं और दिव्य उपस्थिति की प्रशंसा करते हैं, और जैसे ही हम दिव्य उपस्थिति की प्रशंसा करते हैं – तो यही है वह रहस्य – ध्वनि ऊर्जा बनाती है, ऊर्जा प्रकाश बनाती है।
जब आप बुरे शब्द के अलावा मुंह से और कोई आवाज़ नहीं निकालते हैं, चीख़ते और चिल्लाते हैं, तो इससे पैदा होने वाली ऊर्जा की कल्पना कीजिए, इससे एक निम्न स्तर की रोशनी प्रकट होने लगती है। सभी लोग, ज्यादातर ९९% लोग जो आध्यात्मिक अभ्यास नहीं कर रहे हैं, उनसे एक अत्यधिक नकारात्मक ऊर्जा निकलती है। उसका नतीजा है उन्हें डिप्रेशन और ऐंज़ाइयटी हैं।
शैतान हमें मूर्ख बनाता है यह सोचने के लिए कि हमारे पास एक तरफ़ टिकट है।
अवसाद इसलिए कि, हमारी आत्मा हमारे शरीर से कह रही है कि हमें यहाँ भेजा गया है, इस प्र्थ्वी पर, एक विशेष कार्य के लिए। हमारे पास दोतरफ़ा टिकट है पर शैतान आपको मूर्ख बना रहा है यह सोचने के लिए कि आपके पास एक तरफा टिकट है। आप आए और सब अंत हो गया। नहीं, नहीं, आप स्वर्ग से हैं और यहाँ आए हैं सिर्फ़ एक सांसारिक अनुभव के लिए। आप एक छोटे से अनुभव के लिए यहाँ आए थे और आप के पास दोतरफ़ा टिकट है वापस जाने के लिए। आपकी आत्मा इस बात से सचेत है, आत्मा कभी भी अनजान नही होती है। यह सीधे दिव्य उपस्थिति से अपनी दिशा प्राप्त करती है। आत्मा कह रही है कि हमारे पास टिकट है और यह विमान बोर्डिंग कर रहा है। हमें पता नहीं, पर शरीर और आत्मा को पता है कि यह विमान को वापस जाना है।
अगर हम इस तैयारी में कुछ भी नहीं कर रहे हैं, तो इससे शरीर में बेचैनी होने लगती है और वह है घबराहट। हमेशा चिंतित, हमेशा भयभीत, कुछ ग़लत है। हाँ, बहुत कुछ ग़लत है। वह कि हम हमारी आत्मा का पोषण नहीं कर रहे हैं, हम कोई अभ्यास नहीं कर रहे हैं, आत्मा को कोई महत्व नहीं दे रहे हैं, और वह आत्मा शाश्वत प्राणी है। यह शारीरिकता एक गाड़ी समान है और उसे वापस मिट्टी में रख दिया जाएगा। राख राख में मिलेगी, मिट्टी मिट्टी में, यह वापस जाएगा। पर वह जो अनन्त प्राणी है, वह जो प्रकाश और ऊर्जा से है, इसका अपना भरण-पोषण है।
“अलहमदुलिल्लाह व शुकरनलिल्लाह” – का रोज़ाना जाप करें अवसाद और चिंता को मिटाने के लिए।
और अलहमदुलिल्लाह, तरिखा (धार्मिक मार्ग) और मौलाना शेख़ (क़) डिप्रेशन और ऐंज़ाइयटी के लिए सिखाते हैं, “अल्हमदुलिल्लाह व शुकरनलिल्लाह।” रोज़ाना अलहमदुलिल्लाह व शुकरनलिल्लाह। अलहमदुलिल्लाह व शुकरनलिल्लाह यह हमारे अवराद (दैनिक अभ्यास) में है। जिनके पास रोज़ाना के अवराद और वज़ीफ़ा (धार्मिक अभ्यास) नहीं हैं, उनके लिए एक ताकीद है कि अलहमदुलिल्लाह कहें- मतलब ‘सारी प्रशंसा ईश्वर (अज़्ज़ व जल) के लिए है।’ सारी प्रशंसा आप (अज़्ज़ व जल) के लिए है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ख़ुद वर्णन दे रहा है कि, सब कुछ मेरी प्रशंसा कर रही हैं, लेकिन आप के पास समझने के लिए कान नहीं है सिवा अहले तफ़्फ़ाक्कुर (चिन्तन के लोग)।
﴾تُسَبِّحُ لَهُ السَّمَاوَاتُ السَّبْعُ وَالْأَرْضُ وَمَن فِيهِنَّ ۚ وَإِن مِّن شَيْءٍ إِلَّا يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِ وَلَـٰكِن لَّا تَفْقَهُونَ تَسْبِيحَهُمْ ۗ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا ﴿٤٤
17:44 – “Tusabbihu lahus samawatus sab’u wal ardu wa man fee hinna wa in min shayin illa yusabbihu bihamdihi wa lakin la tafqahoona tasbeehahum innahu kana haleeman ghafoora.” (Surat Al-Isra)
“सातों आसमान और ज़मीन और जो लोग इनमें [सब] उसकी तसबीह करते हैं और [सारे जहान] में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो उसकी [हमद व सना] की तसबीह न करती हो मगर तुम लोग उनकी तसबीह नहीं समझते इसमें शक नहीं कि वह बड़ा बुदृबार बख़्शने वाला है।” (सूरत अल इसरा १७:४४)
अवलियाल्लाह (संतो) अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के अनुमति से सृष्टि के हर चीज़ की प्रशंसा सुन सकते हैं। वे उनकी आत्मा की आंतरिक शक्ती से चलते हैं। तो, इसका मतलब यह है कि, सब कुछ परमात्मा की प्रशंसा कर रही है। यह बीच में अज्ञानी मानव जाति है जो कहता है, ‘नहीं, मैं कोई प्रशंसा नहीं करूँगा।’
आपकी प्रशंसा और कृतज्ञता अल्लाह (अज़्ज़ व जल) का ध्यान आकर्षित करती है।
जैसे ही हम प्रशंसा करते हैं, और जैसे ही हम प्रशंसा कर के अलहमदुलिल्लाह, अलहमदुलिल्लाह, अलहमदुलिल्लाह कहते हैं – तो सब कुछ, जो आप समझते हैं आपको नहीं मिल रहा है जो दूसरों को मिल रहा है – तब भी कहते रहिए अलहमदुलिल्लाह, अलहमदुलिल्लाह, सब प्रशंसा ईश्वर (अज़्ज़ व जल) के लिए है, सब प्रशंसा ईश्वर (अज़्ज़ व जल) के लिए है, और फिर वह अवसाद हटने लगता है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) कहता है, ‘तुम सही हो। अब, जब तुम मेरी प्रशंसा कर रहे हो, मेरा ध्यान तुम पर है। मैं हुँ वह जो तुम्हारी दवाई, ऊर्जा और वास्तविकता को भेजूंगा उस आत्मा के लिए ताकि वह चिंतित न हो और उदास न हो।’
मौलाना शेख़ (क़) फिर कहते हैं कि इस अलहमदुलिल्लाह व शुकरनलिल्लाह, शुकरनलिल्लाह इसलिए कि – मैं आपकी प्रशंसा कर रहा हूँ जैसे आपकी सारी रचना आपकी प्रशंसा कर रही है, और शुकरनलिल्लाह इसलिए मेरे ईश्वर, क्योंकि मैं शुक्रगुज़ार हूँ अच्छे स्वास्थ्य के लिए, शुक्रगुज़ार हूँ अपने बच्चों के लिए, शुक्रगुज़ार हूँ अपने परिवार के लिए। शुक्रगुज़ार हूँ उसके लिए जो मेरे पास है और शुक्रगुज़ार हूँ उसके लिए जो मेरे पास नहीं है, क्योंकि आप जिस के लिए आभारी नहीं हैं, हो सकता है अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने आपको उससे बचाया है। तो, इसका मतलब है कि हमें शुकरनलिल्लाह, शुकरनलिल्लाह, शुकरनलिल्लाह जारी रखना होगा – भले ही आपके हाथ में ५० सेंट्स हो – शुकरनलिल्लाह, इसलिए कि, हो सकता है कि हाथ ही ना हो। हमारे जीवन में सब कुछ दिव्य उपस्थिति की प्रशंसा करना है – अलहमदुलिल्लाह से शुकरनलिल्लाह तक – ईश्वर (अज़्ज़ व जल) ने हमें जो दिया है उसके लिए शुक्रगुज़ार रहना है। हम प्रार्थना करते हैं कि, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) इस अलहमदुलिल्लाह और शुकरनलिल्लाह से हमारा अवसाद दूर करें, हमारी चिंता दूर करें और लोगों पर आई हुई सभी बीमारियों को दूर करें।
Subhana rabbika rabbal ‘izzati ‘amma yasifoon, wa salaamun ‘alal mursaleen, walhamdulillahi rabbil ‘aalameen. Bi hurmati Muhammad al-Mustafa wa bi siri Surat al-Fatiha.
ईश्वर से माँगोगे तो कभी ख़ाली हाथ नहीं होंगे।
नबी ﷺ बयान करते हैं, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) को संकोच होता है किसी को भी खाली हाथ लौटाने से। जब हम हाथ आगे बढ़ाते हैं तो हम ईश्वर से मांग रहे हैं, मेरे प्रभु मुझ पर कृपा करें, मैं आपके पास आ रहा हूँ, मैं ग़रीब हूँ और आप अमीर हैं, और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उस हाथ को कभी खाली नहीं भेजा। उसने उसे रोशनी और नेमतो से भर दिया। जितना अधिक आप अपने प्रभु के पास आते हैं उतना ही वह आपको खाली हाथ नहीं भेजता है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) कहता है, ‘हमेशा मुझ से मांगो, मुझे तुम्हें देने के लिए मांगो’। जो कुछ ईश्वर दे रहा है आपके हाथ में, आप उसको देख नहीं सकते हैं, लेकिन वह एक सुंदर प्रकाश है जो आपके हाथों से निकलता है। जैसे ही आप इसे लेते हैं और अपने चेहरे पर लगाते हैं, आपका चेहरा दिव्य रोशनी से रोशन हो जाता है और कठिनाई और बला को दूर करता है, इंशाल्लाह।
Ila sharifin Nabi ﷺ wa ila aalihi wa sahibil kiram wa sayiri sadatina wa Siddiqin. Al Fatiha.
इस सोहबाह का प्रतिलेखन करने में हमारे प्रतिलेखकों के लिए विशेष धन्यवाद।
सुहबा की मूल तारीख: जुलाई १७, २०१७
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