पवित्र क़िबला (प्रार्थना की दिशा) — तीन क़िबलों की वास्तविकता।
मौलाना (क़) के वास्तविकताओं से जैसे कि शेख़ नूरजान मीरअहमदी ने सिखाया है।
पनाह माँगता हूँ मै अल्लाह की शैतान मर्दूद से,
शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
A’udhu Billahi Minash Shaitanir Rajeem
Bismillahir Rahmanir Raheem
“अतिउल्लाह व अतिउर रसूल व उलिल अमरे मिनकुम” और हमेशा की तरह मेरे लिए ताकीद कि मैं एक कमज़ोर सेवक हूँ, या रब्बी अना अब्दुकल आजीज़, व दाइफ, व मिसकींन, व ज़ालिम, व जहल और अल्लाह की कृपा से हम अब भी अस्तित्व में हैं, यह अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की रहमा है और इंशाल्लाह यह रहमत हम पर बनी रहे और हमारे ग़लत कामों को माफ़ करें।
सब कुछ महत्वहीन है नुक़त की खोज में।
﴾أَطِيعُواللَّه وَأَطِيعُوٱلرَّسُولَ وَأُوْلِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ… ﴿٥٩ …
4:59 – “…Atiullaha wa atiur Rasula wa Ulil amre minkum…” (Surat An-Nisa)
“….अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल का कहना मानो और उनका भी कहना मानो जो तुममें अधिकारी लोग हैं…”(अन निसा, ४:५९)
अलहमदुलिल्लाह, औलियाल्लाह (संतों) के द्वारा और “अतिउल्लाह व अतिउर रसूल व उलिल अमरे मिनकुम” से हमें सिखाया गया है हमारे क़ीबले की वास्तविकता (प्रार्थना की दिशा), हमारे सलाह (प्राथना) की वास्तविकता और मा’आरिफ़ (गनोस्टिकिसिम) की वास्तविकता। हम इससे पहले दुनिया ( सांसारिक दुनिया) और ज़ाहिरी लोग की बात कर रहे थे। इसलिए जब हम ये नात कलाम (प्रशंसा के शब्द) सुनते हैं और वह जो हमने पोस्ट किया था नुक़त (डॉट) और डोकटर इक़बाल, अल्लामा इक़बाल और फिर बुल्लेह शाह (क़) के बारे में, ये औलियाल्लाह जब नुक़त के बारे में बात करते थे, नुक़त की खोज, तो इसके सामने सब कुछ महत्वहीन हो जाता है, इन हख़ाऐख़ (वस्तविकताओ) के बारे में बात करना विस्म्यकारी और विशाल है। यह मुल्क (सांसारिक क्षेत्र) जो लोग इस रूप की दुनिया पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, लगता है जैसे की वे किसी और धर्म का अभ्यास कर रहे हैं, और वे बहुत ही बाहरी समझ, बाहरी खोज और तुच्छ में खो जाते हैं; यह अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की प्रभावशाली ताक़त की तुलना में लगभग बालवाड़ी लगता है। अपने भक्त के लिए जो कुछ भी अल्लाह के पास है उसमें विनम्रता की आवश्यकता होती है, सभी आदाब (शिष्टाचार) और ट्रेनिंग (प्रशिक्षण ) की आवश्यकता होती है जिसके बिना तरीक़े के आदाब खो जाते हैं।
तरिखा़ आदाब: शेख़ की विनम्रता के सामने ख़ुद को नम्र करो।
तरीख़े के आदाब अब किसी को समझ नहीं आते हैं। यह एक खोई हुई कला है। ये शिक्षण हमें सिखना है और हमारे जीवन पर लागू करना है। हम सब कुछ ला इलाहा इल्लाल्लाह मुहम्मदुन रसूलल्लाह ﷺ (कोई ईश्वर नहीं है सिवा अल्लाह के और मुहम्मद उनके पैग़म्बर हैं) के बारे में सिखा रहे हैं। आपको अख़लाक़ और किरदार सिखातें है कि साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की विनम्रत हमें ला इलाहा इल्लाल्लाह के बारे में सिखाती है और ला इलाहा इल्लालह का महत्व बताती है, पर मुहम्मदुन रसूल्लल्लाह ﷺ के बारे में नहीं सिखाती है? यदि आप यह नहीं समझ सकते हैं तो आप पुरे तारिक़े को समझने में असफ़ल हैं।
इसलिए जब वे शेख़ नाज़िम (क़) के पास जाते थे और शेख़ नाज़िम (क़) से पूछते थे, “आपके शेख़ कौन हैं?” इस तरीक़े के शेख़ कौन हैं?” वह कहते थे: “बेशक, शेख़ अब्दुल्लाह अद फ़ैज़ दाग़ेस्तानी (क़)।” इसलए, यही विरासत है, क्योंकि जब आप मुहम्मदुन रसूल्लल्लाह ﷺ के पास जाते हैं, तो वे मुहम्मदुन रसूल्लल्लाह ﷺ के बारे में बात नहीं करते हैं। वे ला इलाहा इल्लल्लाह के बारे में बात करते हैं।
शेख़ के दर्जे को कम मत समझो।
लिहाज़ा, शेख़ के दर्जे को कम मत समझो, क्योंकि वह जो आपको तालीम दे रहे हैं, वे दो पल में आपको उठाकर दिव्य उपस्थिति के सामने लाने की क्षमता रखते हैं। क्योंकि वे आते हैं और आपसे विनम्रता से बात करते हैं तब आप अपना दिमाग़ खो देते हैं और सोंचने लगते हैं, “ओह! यह ऐसे हैं, मै यहाँ जाऊँगा, मै वहाँ जाऊँगा।” तब आप इन दूसरे मज़हब वाले लोग, वहाबी, जैसे बन जाते हैं। वे समझते हैं कि, वे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के पास जाने वाले हैं और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) उनको आशीर्वाद देगा और उन्हें ये सारे मक़ाम देगा। जब वे सिखा रहे हैं उनको, “तुम क्या बात कर रहे हो?” अल्लाह (अज़्ज़ व जल) आपको मुहम्मदुन रसूल्लल्लाह ﷺ की ओर निर्देशित करेगा। अगर वह आपको इस वास्तविकता को नहीं देना चाहता था तो वह उसे नहीं लाता था और फिर आप अेहले ला इलाहा इल्लल्लाह होते। इसलिए, यह पुरी शिक्षा छात्र को इस वास्तविकता को सिखाने के लिए थी।
शेख़ जो विनम्रता में मुक़ाबला करते हैं अधिक फ़ैज़ पाते हैं।
इसलिए, जब वे पूछते हैं और सुनते हैं कि किस तरह ये शेख़ विनम्रता से बात करते हैं क्योंकि आपकी सभ्यता में ये नहीं है। इसका मतलब ये है कि, जब आप सुासंस्क्र्त सभा में बड़े बड़े उल्लमा और हाजी और मुफ़्ती और बड़ी जानकारी रखने वाले लोगों के साथ बैठते हैं, तो ये सब ख़िताब क्या हैं? वे स्कूल में सिखाते हैं कि जब आप इन शेखों के समूह में होते हैं, तो वे अगले आलिम (विद्वान) को उच्चतम और सबसे बड़े नामों से बुलाते हैं। अगला व्यक्ति घूमता है और उससे कहता है, “तुम सबसे उच्चतम हो। तुम सबसे बड़े हो।”
और हम संतो के सुल्तान के साथ बैठे और उन्होंने कभी किसी का उल्लेख नहीं किया। उन्होंने कभी भी उनकी उपस्थिति में किसी की भी प्रशंसा नहीं की। उन्होंने यह कहा कि वे सिर्फ़ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के सेवक हैं और राष्ट्र के सेवक हैं। एक पल के लिए आपने अगर सोंचा,” वह तो कोई नहीं थे” तो आपने तारिक़ा खो दिया। यदि आप ऐसे लोगों की खोज में हैं जो खुदको कुछ समझते हैं, तो आप ग़लत हाथों में पड़ सकते हैं। इसीलए तरीक़ा आकर हमें सिखलाता है कि, उन्हें खोजो जो विनम्रता में मुक़ाबला कर रहे हैं। वे ख़ुद को लगातार रगड़कर नष्ट कर रहे हैं और लोगों को बता रहे हैं की वे कुछ भी नहीं हैं, और वे कमज़ोर हैं, वे ग़रीब हैं और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की राह में फ़ख़ीर हैं, क्योंकि वे आपसे बात नहीं कर रहे हैं। बल्कि वे उन शेख़ से बात कर रहे हैं जो उनके सामने बैठे हैं और उन्हें फ़ैज़ दे रहे हैं। वे उनकी सभा में कुछ भी नहीं हैं और जब वे उनको देखते हैं तो कहते हैं, “हम कुछ भी नहीं हैं, हम कुछ भी नहीं हैं, हम कुछ भी नहीं हैं, आप चमकते हो और आपका प्रकाश हमारे माध्यम से प्रतिबिंबित होता है और लोगों तक पहोंचता है।“
शेख़ एक अधिकारपूर्ण वसिला हैं जो आपके लिए अनन्त वास्तविकताओं को खोलते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य से दर्शकों को सुनाई दे रहा है, “ओह! उन्होंने कहा कि वह कुछ भी नहीं है इसलिए मैं दूसरे की तस्वीर डालूँगा, ये मेरे शेख़ हैं”। आपने पूरी बात खो दी। यदि ये नहीं हैं जो आपको सिखा रहे हैं, तो फिर कौन है वह जो आपको उठा रहे हैं, आपकी बढ़ोत्तरी कर रहे हैं और उन शेखों की उपस्थिति में प्रस्तुत कर रहे हैं। आप उस वास्तविकता के बाहरी दरवाज़े तक भी नहीं पहुँच सकते हैं। लेकिन उनके माध्यम से और उनके वसिले (साधन) से वे आपको उस अंदर के कक्ष में ले जाते हैं जो उन्होंने हासिल किया है और वहाँ से उस आंतरिक कक्ष में – जिसे लूब कहते हैं, फल और उस फल का अर्क। आपको इसके अन्दर मिलता है मग़ज (भेजा), वहाँ तेल है, जहाँ उसकी वास्तविकता है। वह बाहरी ढाँचा नहीं जिस पर आप फँस गए हैं।
अवलिया अपने ज्ञान के बल से आपका भाग्य बदल सकते हैं।
इसलिए आप साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की मुहब्बत के साथ कहाँ पहोंचते हैं? आप पहोंचते हैं ला इलाहा इल्लल्लाह के वास्तविकता और उसके हक़ाएक़ पर। इसलिए वही वास्तविकता, वही शिक्षण प्रतिबिंबित हो रहे हैं। जब वह (शेख़) कह रहे हैं कि उनके शेख़ महान हैं और वह आपको उनके (शेखों) दिल में और उनके उपस्थिति में ले जा सकते हैं और उनकी वास्तविकता से आशीर्वाद मिल सकता हैं, तो, उनका ज्ञान एक संकेत है, पुस्तक पढ़ना नहीं। वह ज्ञान जहाँ, उनका ह्रदय एक पुस्तक की तरह है, बह रहा है कवसर (बहुतायत फ़व्वारे )की तरह। हर ज्ञान जो वे दे रहे हैं वह साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की क़लमों (लेखनी) की तरह है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उनके आत्मा को इतनी शक्ती दी है कि वे उनके ज्ञान के बल से आपके भाग्य बदल सकते हैं।
आपके भाग्य में था बरगर किंग में काम करना और आपको हैमबर्गर और फ़्राइज़ के सिवा कुछ पता नहीं था। जैसे ही आप उनके साथ बैठे, उन्होंने आपको दो कलाम सिखाए जिससे आपकी आत्मा की क़िस्मत बदल गयी। फिर आप कल्पना कीजे की जब उनकी आत्मा आपको झपडकर पकड़ के हर रात किनके उपस्थिति में ले जाती है? यही कारण आपको उनसे हर ५ मिनिट पूछने की ज़रूरत नहीं, “मेरे लिए दुआ (प्रार्थना) कीजे, मेरे लिए दुआ (प्रार्थना) कीजे”। यह आपकी नफ़स और अहंकार कह रहा है। उनकी आत्मा को ठीक पता है आपके साथ क्या करना है। वह आपके पूछने का इंतेज़ार नहीं कर रहे हैं कि वे आपसे क्या करें। उनकी आत्मा आपको पकड़कर ठीक उसी तरह चलती है जैसा साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ चाहते हैं। पर्दे के पीछे बहुत बातें हो रही हैं जिसे उन्हें ना बताने की ज़रूरत है और ना दिखाने की और ना ख़ुद के बारे में कुछ दिखाने की। उन्हें इस गंदी दुनिया में होते हुए उस कुछ भी नहीं के सागर में मुक़ाबला करना है।
सुल्तान अल अवलिया: १२४,००० अवलिय के बीच सबसे अधिक शक्तिशाली नुक़त।
वह जो सबसे अधिक ना होने का दर्जा पाते है उन्हें मिलता है एक नुक़त । वह कम से कमतर यानी -१, -२, -३, -४; अब वह बन रहे हैं बहुत शक्तिशाली अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की उपस्थिति में। इसलिए, मौलाना शेख़ (क़) ने कहा, “१२४,००० अवलिया (संतो) में, मैं निगेटिव ०००००० १२४,००० वली (संत) हुँ। इसका क्या मतलब है? “जिस पल अल्लाह (अज़्ज़ व जल) मुझे चालू करते हैं, तो मेरे पास १२४,००० अवलिया की शक्ती होती है। १ नहीं। मैंने बराबरी की और मैंने अपने ना होने में ट्रेन किया लेकिन जब अल्लाह (अज़्ज़ व जल) सविच को फ़्लिप किया, तो वह इस नुक़्त को उस तरफ़ फ़्लिप कर दिया।”
इसलिए, इसका मतलब है कि दुनिया में – आप बराबरी करते हैं निगेटिव स्तम्भ में होने के लिए, “मै कुछ भी नहीं, मैं कुछ भी नहीं, मैं कुछ भी नहीं।” अल्लाह (अज़्ज़ व जल) आपको कुछ भी ना होने में मदद करता है, लोगों को भेजकर आपका तिरस्कार करने, आपको धोखा देने, और आपको अपमानित करने के लिए। तो, अब आप पीछे की तरफ़ जा रहे हैं। नुक़त आ रहा है, नुक़त आ रहा है, नुक़त आ रहा है। मौलाना यही सिखा रहे थे कि, “जब अल्लाह (अज़्ज़ व जल) स्विच को फ़्लिप करता है, ये नुक़त इस तरफ़ फ़्लिप हो जाता है, और उनके पास अब सभी १२४,००० अवलियाल्लाह की शक्ती होती है। एक वली को यदि अनुमति दी गयी तो वह पुरी दुनिया को उलटा कर सकते हैं, क्योंकि उनके लिए यह कुछ बड़ा काम नहीं है। जब वे अपनी आत्मा को देखते हैं, तो वे उनकी आत्मा इस अर्द (पृथ्वी) को पकड़े हुए देखते हैं। यह दुनिया (भौतिक संसार) ‘कुछ भी ना होने’ का निवास है। यही कारण है कि, वे इन वास्तविकताओं को सिखा रहे हैं।
पैगंबर मुहम्मद ﷺ के दिल से आँहदीस का लाइव प्रसारण होता है।
एक पल के लिए भी मत सोंचिए कि क्योंकि साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ ने यह नहीं कहा है, या कहाँ है वह हदीस (नबी ﷺ की बातें) जिसमें नबी ﷺ ने यह कहा है? कहाँ है वह हदीस जिसमें नबी ﷺ ने ऐसा कहा है? ये उसके बारे में नहीं है। वह उनकी पवित्र हदीस में छुपी हुई है। जो आँहदीस का अनुवाद करते हैं , वे उर्दू में लिखते हैं, और अरबी में बोलते हैं और कभी अरबी से अरबी में कहते हैं। परंतु वे उस हदीस का एक शब्द भी नहीं जानते जिसका वह वर्णन कर रही है क्योंकि वह साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल से सीधा आ रही है। आँहदीस एक फ़ुटनोट (पादटिका) समान हैं। जैसे ही वे उन कुछ शब्दों को पढ़ते हैं, वह एक सूचकांक (इंडेक्स) की तरह है जो सीधे साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के पवित्र दिल से आती है, और शुरू करती है प्रसारित करना जीविनत बातें जो आज के लिए उचित हैं और जो साय्यिवदिना मुहम्मद ﷺ चाहते हैं उस क्षेत्र में उस राष्ट्र के लिए, और उस क्षेत्र के वली (संत) के लिए और वो जो प्रतिज्ञा के दिन उनके हिस्से में आए थे।
दिव्य उपस्थिति में कौसरी शेख़ आपके वकील हैं।
जब अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने आत्माओं को बाटा और कहा, “यह आत्मा, यह आत्मा, यह आत्मा, यह आत्मा, और ये (वली) अब तुम्हारे वकील (प्रतिनिधी) होंगे हमारे दिव्य उपस्थिति में।” और आत्माओं ने कहा, “बला, हम राज़ी हैं, या रब्बी” और हमारा जीवन उन्हें खोजने के लिए था।
﴾وَإِذْ أَخَذَ رَبُّكَ مِن بَنِي آدَمَ مِن ظُهُورِهِمْ ذُرِّيَّتَهُمْ وَأَشْهَدَهُمْ عَلَىٰ أَنفُسِهِمْ أَلَسْتُ بِرَبِّكُمْ ۖ قَالُوا بَلَىٰ ۛ شَهِدْنَا ۛ أَن تَقُولُوا يَوْمَ الْقِيَامَةِ إِنَّا كُنَّا عَنْ هَـٰذَا غَافِلِينَ ﴿١٧٢
7:172 – “Wa idh akhadha rabbuka min banee adama min Zhuhorihim dhurriyyatahum wa ashhadahum ‘ala anfusihim alastu biRabbikum qalo bala shahidna an taqolo yawmal qiyamati inna kunna ‘an hadha ghafileen.” (Surat Al-A’raf)
और याद करो जब तुम्हारे रब ने आदम की संतान से (अर्थात उनकी पीठों से) उनकी संतति निकाली — और उन्हें स्वयं उनके ऊपर गवाह बनाया कि “क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हुँ?” बोले, “क्यों नहीं, हम गवाह हैं।”— ऐसा इसलिए किया कि तुम क़ियामत के दिन कहीं यह ना कहने लगो की “हमें तो इसकी ख़बर ही न थी।” (अल अराफ, ७ : १७२)
और उन्हें खोजने के परिणामस्वरूप, हमारी फ़ाइल उनके हाथ में है। उनके पास है हमारी वास्तविकता की फ़ाइल, हमारी मंज़िल और हमारे रूहानी तलाश के लिए क्या आवश्यक है उसकी फ़ाइल; जिसमें से कुछ भी दिखाया नहीं जाएगा, और यह सब दिल से है।अगर आप छोड़ कर जाते हैं तो आप वह वास्तविकता को खो देते हैं। आपकी नफ़स (अहंकार) आपको कई दिशाओं में ले जाएगी तबतक जबतक आप दुनिया (भौतिक संसार) से पिट कर आप शायद पलट कर वापस आते हैं। जब आप वापस आते हैं, तो इस वास्तविकता में संघर्ष करना और भी कठिन हो जाता है।
शेख़ के शिक्षण को जज़्ब करो अपने आत्मिक विकास के लिया।
तो, ये सम्पूर्ण शिक्षण बहुत विचार शील है। जो कुछ वे सिखा रहे हैं, अगर आप होशियार हैं तो इस पर आप ग़ौर करेंगे, जज़्ब करेंगे और समझेंगे कि आप इसका किस तरह उपयोग करेंगे अपने शेख़ से अपने रुहानि सम्बंध और रिश्ता स्थापित करने के लिए। जो ज्ञान उनसे बह रहा है, आपको उनकी वास्तविकता का प्रतीक देना चाहिए। ये मुहम्मदन हख़ाएख़ एक फ़व्वारे की तरह हैं जो सीधा साय्येदिना मुहम्मद ﷺ के दिल से आ रहे हैं। यह पृथ्वी पर बहुत ज़्यादा नहीं हैं। ये मत समझिए कि ये छोटे झरने हैं क्योंकि इससे उनकी वास्तविकता कम होती है। वे बहुत कम हैं और दूर दूर हैं। ये बहती हुई कौसरी धारा हैं।
इस वास्तविकता का एक बूँद भी आप अगर पीते हैं, तो इसका मतलब यह है कि आपकी आत्मा पी रही है, आपका मुँह नहीं। जब वे इस वास्तविकता में पीने की बात करते हैं, तो इसका मतलब यह है कि आपकी आत्मा उस ज्ञान को पी रही है, और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) से उस हख़ाएख़ (वास्तविकता) के सागर में जाकर तैरने की अनुमति माँगती है और यह सब यहाँ रुकता नहीं है जबतक शेख़ के दूसरे उपदेश तक और इस तरह यह चलता रहता है। इसका इससे कोई मतलब नहीं की शेख़ आत्मा को कैसे ले जा रहे हैं और उन्हें प्रस्तुत कर रहे हैं। आत्माओं की सभा कभी भी ख़त्म नहीं होती है। आपका शरीर रुक सकता है और ‘शुभरात्रि’ कह सकता है। आत्मा के लिए कोई समय नहीं है। आत्माओं की सभा अब शुरू हो रही है। वह निरन्तर एक दर्स (सबक़) के तहत है, जो लगातार सिखा रहा है और ऊपर उठा रहा है। पर्दे के पीछे कई चीज़ें हो रही हैं।
तीन क़िबलॊं की वास्तविकता।
१. मक़ामल इस्लाम: बाहरी आज्ञानुकूलता में सर्वश्रेष्ठ रहो।
आज रात हम इन तीन क़ीबलो (प्रार्थना की दिशा) की वास्तविकता के बारे में बात करने वाले थे।आजकल लोग अपने शरीर में वयस्थ हैं और शरीर का क़िबला है पवित्र काबा। इसलिए, काबे की दिशा की ओर अपने शरीर को करो। इस काम में आप पुरी कोशिश करें। क्योंकि यह गोली चलाने समान नहीं है जहाँ दो डिग्री इधर या तीन डिग्री उधर मुड़ कर करना है, अगर ऐसा होता तो फिर ठीक होता। आप सलाह ख़त्म होने पर कह सकते हैं, “क्षमा कीजे, हम सभी को दोहराना पड़ेगा”। पूछो क्यों? “क्योंकि हम चूक गए।” सही? जब आप नमाज़ (प्रार्थना) के लिए जाते है तो वे आपकी क़ालीन को घूमा देते हैं, “शेख़ आपका क़िबला इस तरफ़ है, दो दिग्रिज इस तरफ़ है।” सलाह की समाप्ति पर आप कह सकते हैं, “माफ़ कीजे, हम हमारे भगवान की तरफ़ शूट कर रहे थे और निशाना ग़लत लग गया।” यह सब बावलापन है। हमें हमारा दृष्टिकोण ठीक करना है और हमारे सलाह की दिशा को पवित्र क़ाबे की तरफ़ करना है। आपके शरीर का काबा उस दिशा में है जिस दिशा में आप अपने शरीर को खड़ा करते हैं। यह आपका इस्लाम है। यह आपके इस्लाम की तरबिया (अनुशासन) है। यह है आपके इस्लाम में सफ़ाई।
शरीर में ग्रस्थ मत रहो, यह पशुवत रूप है।
जब आप अपने शरीर को धोते हैं तो आप अपने दिल को नहीं धो रहे हैं। आप अपने शरीर को धो रहे हैं। आपका शरीर एक गधे समान है। आपका शरीर वापस क़ब्र में जाने वाला है। राख राख में मिलेगी, धूल धूल में। जो अपने शरीर पर अधिक ध्यान देते हैं उन्हें वे और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) देख रहे हैं। कहते हैं, “इस आदमी को देखो, इसे अपने गधे से कितना प्रेम है। धो धो कर इसे साफ़ कर रहा है।” हाँ, मेने ऐसा इंटेरनेट पर देखा है।वे अपने जानवर ले जाते हैं और उसके पैर घस घस कर धोते हैं। तो, मुझे माफ़ करना, यह तो एक जानवर है।
आप कितना और धोने वाले हैं इस गधे के पैर? क्या आप इसको खाने वाले हैं? यह एक जानवर है। शरीर भी कुछ अलग नहीं है। शरीर भी एक पशुवत रूप है। यह वह गाड़ी है, वह वाहन जिसमें अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने आपको इस दुनिया (भौतिक संसार) में भेजा है। जो समझते हैं कि वे सलफ हैं तो ये बड़ी बेहूदी बात होगी क्योंकि वे सलफ होने के ख़रीब भी नहीं हैं। सहाबी (साथी) वुदु इस ग्लास से भी कम, एक कप से करते थे।
एक प्याले से कम पानी में आप अपने हाथ, चेहरा और पैर कितना धो सकते हैं? क्या वह पानी के बारे में था? नहीं। वह प्रतीकात्मक था और वे धूल भरे रेगिस्तान में थे। उनको ओसीडी हो सकता था- आपको भी हो सकता था क्योंकि आपके उपर इतनी धूल होती- और आप कहते, “इस प्याले से काम नहीं चलेगा। मैं इसे दस बार भरूँगा।” तो, वे हमें ये सब ईशारात (नीशानि) दे रहे हैं। जाओ धो। यह प्रतीकात्मक था और यह हमारे इस्लाम का स्तर था। इसलिए, अपनी सलाह पढ़ने के लिए ग़लीज़ हालत में मत आना। इस वाहन को धो, अपने इस जिस्मनियत को धो अपनी ख़ाबिलियत की बेहतरीन हद तक।
२. मक़ामल ईमान और क़िबलतुल ईमान: अपने से ज़्यादा पैग़म्बर ﷺ से प्यार करो।
मगर, पैग़म्बर ﷺ उनके लिए लाए खीबलतुल ईमान, अतीउर रसूल ﷺ (रसूल की आज्ञा का पालन) से। ये है “अतिउल्लाह व अतीउर रसूल व ऊलिल अमरे मिनकुम (पवित्र क़ुरान, ४:५९)। ऊलिल अमरे (संतो)” से और इस मक़ाम और इस समझ से इस्लाम का मक़ाम है। अतिउल्लाह से, जब उनका विश्वास बढ़ता है और अनुपालन करता है साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ को। पैग़म्बर ﷺ ने क्या वर्णन दिया है? “आपका ईमान यह है कि आप मुझे ख़ुद से ज़्यादा प्रेम करें।”
لاَ يُؤْمِنُ أَحَدُكُمْ حَتَّى أَكُونَ أَحَبَّ إِلَيْهِ مِنْ وَالِدِهِ وَوَلَدِهِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ
“La yuminu ahadukum hatta akona ahabba ilayhi min walidihi wa waladihi wan Nasi ajma’yeen.”
“आप में किसी को भी तब तक ईमान नहीं होगा, जब तक वह अपने पिता, अपने बच्चों और मानव जाति से अधिक मुझे प्यार नहीं करते हो।” नबी मुहम्मद ﷺ
क़िबले का रहस्य खुलता है जब आप साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल पर ध्यान देते हैं।
आपने समझा इस्लाम आपके शरीर के बारे में है। यह सोंच कर आपने शरीर को उत्तम किया, धोया और अनुशासन में लाया। बाद मे आपको एहसास हुआ की शरीर को साफ़ तो रखना चाहिए मगर उसपर इतना ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं है। शरीर क्या चाहता है और शरीर के संबंधो पर आप ज़्यादा ध्यान ना दें। लोगों को आजकल जुनून है उनके पैसे, उनके गाड़ी उनके घर और उनके संपत्ति का। यह सब जिस्मानी हैं।
हमारा यक़ीन था कि, हम ख़ुद से ज़्यादा साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ से प्रेम करें। अब यह बनता है दिल। तो, मुझे अब समझ में आया कि, मेरे शरीर को बुनियादी तौर पर साफ़ रखना है, उसे अनुशासन में लाना है पर इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं देना है। असली जुनून तो अब शुरू होता है और वह है क़्ल्ब (दिल) में, जिसमें है बैतुल्लाह (अल्लाह अज़्ज़ व जल का घर)। यह अब हमें रहस्य दे रहा है, “मैं ना स्वर्ग में हूँ और ना धरती पर।” इसका मतलब क्या है? अल्लाह (अज़्ज़ व जल) अब हमें उस क़ीबले की वास्तविकता का वर्णन दे रहा है, “मैं स्वर्ग में नहीं हूँ, मैं धरती पर नहीं हूँ।” वह अब क़िबले का रहस्यस बता रहा है। आपने अपने शरीर को अनुशासन में लाया, अब इस पर ताला है। आपने अपने शरीर को साफ़ किया, अब इस पर ताला है, अब वह तरबिया (अनुशासन) के तहत है, एक तरबियत आफ़ता घोड़े की तरह। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) अब ईशारात (निशानी) दे रहा है, “मैं स्वर्ग में नहीं हूँ, मैं धरती पर नहीं हूँ, मैं मेरे भक्त के दिल में हूँ।”
مَا وَسِعَنِيْ لَا سَمَائِيْ ولا اَرْضِيْ وَلَكِنْ وَسِعَنِيْ قَلْبِ عَبْدِيْ اَلْمُؤْمِنْ
“Maa wasi`anee laa Samayee।, wa la ardee, laakin wasi’anee qalbi ‘Abdee al Mu’min.”
“ ना तो मेरा स्वर्ग और ना ही मेरी प्रथ्वी मुझे संभाल सकती है, लेकिन मेरे विश्वास करने वाले दास का दिल (करता है)।” (नबी मुहम्मद ﷺ से पहोचायी गयी हदीस क़ुदसी )
वह जो नम्र थे और जिसने आपको ला इलाहा इल्लल्लाह के बारे में बताया और दूसरे आकर आपको बताए की वह वास्तविकता वास्तव में मुहम्मदन रसूल्लिल्लाह ﷺ को प्रतिबिबंबित करती है। वह अब अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के लिए बन गया एक विश्वास करने वाला और फिर नबी ﷺ ने साहाबी (साथियों) को आकर सिखाया, “आपका ईमान है कि आप मुझे ख़ुद से ज़्यादा प्रेम करो।” इसका मतलब यह है कि उनका दिल अब अल्लाह(अज़्ज़ व जल) का घर बन गया जिसमें साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ का प्रेम प्रकट होता है।
لاَ يُؤْمِنُ أَحَدُكُمْ حَتَّى أَكُونَ أَحَبَّ إِلَيْهِ مِنْ وَالِدِهِ وَوَلَدِهِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ
“La yuminu ahadukum hatta akona ahabba ilayhi min walidihi wa waladihi wan Nasi ajma’yeen.”
आप में किसी को भी तब तक ईमान नहीं होगा, जब तक वह अपने पिता, अपने बच्चों और मानव जाति से अधिक मुझे प्यार नहीं करते हो।” नबी मुहम्मद ﷺ
साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ का क़्लब है असल काबा अहबाब के लिए।
तो, जब वे खड़े होते हैं सलाह के लिए, वे प्रवेश करते हैं असल काबे में। असल काबा है उनका क़्लब जो साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के प्रेम से भरा हुआ है। कई अवलियाल्लाह ने देखा है जहाँ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने ट्रान्सपलानट (प्रतिरोपण) किया है उनपे और उनके दिल को बदल दिया है और उसपर लिख दिया है रसूलल्लाह ﷺ। जैसे साय्यिदिना जिबरील (अलेह सलाम) दिखायी दिए थे, नबी ﷺ के दिल को खोला और धोया था, उसी तरह उनको भी धोया गया है जब उनका दिल खोल कर उसपर लिख दिया गया है मुहम्मदुन रसूलल्लाह ﷺ।यह हैं अहबाब (प्रेमी), उनका पुरा अस्तित्व है साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ का प्रेम, और वे उस काबे में प्रवेश करते हैं। तो, जब वे नमाज़ (प्राथना) पढ़ना शुरू करते हैं, वे अपने ईमान के क़िबले में प्रवेश करते हैं। वे पवित्र हदीस में रहना चाहते हैं, “तुम जिससे प्यार करते हो उनके साथ रहोगे।”
قَالَ رَسُول اللَّهِ صلى الله عليه و سلم: الْمَرْءُ مَعَ مَنْ أَحَب
Qala Rasulullah (saws): “Almar o, ma’a man ahab.”
नबी मुहम्मद ﷺ ने कहा है : “वे उनके साथ रहेंगे जिनसे वे प्यार करते हैं।”
अहबाब अपने दिलों को साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की मुहब्बत की रोशनी से भर लेते हैं।
उन्होंने स्थापित किया कि उनका प्रेम और उनका सबसे श्रेष्ठ प्रेम साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ का प्रेम है। तो, तुरंत उनकी आत्मा साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के उपस्थति में होती है और वे उनकी आत्मा के साथ वे उनके दिल में प्रार्थना करते हैं। तो, वे सभी अरकान कर रहे हैं जो आप कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे उनके दिल के अंदर हैं। उनके दिल का क़िबला साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के वास्तविकता और प्रकाश से भरा हुआ है, और वे नबी ﷺ के साथ हैं, जहाँ नबी ﷺ हमेशा इमाम (धर्मगुरु) हैं और वह असल सलाह है।
यही कारण आप अपनी सलाह में कहते हैं, “अस सलामु अलैका” (आप पर शांति हो) फिर भी आप कुछ नहीं समझते हैं। जब वे इस मक़ामुल ईमान (विश्वास का स्थान) में होते हैं और अपने दिल में प्रवेश करते हैं, तो वे साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के साथ प्रार्थना करते हैं। और जब वे कहते हैं, “सलामु अलैक अय्यूहन नबी” (शांति हो आप पे, ओ नबी) तो नबी ﷺ उनके सामने होते हैं और वे साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ को सलाम (शुभकामना) देते हैं। “व इबादिल्लाहिस सालीहीन” जो हैं असहाब अन नबी ﷺ ( नबी ﷺ के साथी), अहलुल बैत अन नबी ﷺ (नबी ﷺ का परिवार) और ये सब अवलियाल्लाह फ़ीस समावाती व फ़िल अर्द, सब उनके सामने हैं। यह उनका क़िबला है।
التَّحِيَّاتُ لِلّٰهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ، اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ، اَلسَّلَامُ عَلَيْنَا وَ عَلٰى عِبَادِ اللهِ الصَّالِحِيْنَ، أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلٰهَ إِلَّا اللهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَ رَسُوْلُهُ
“At-tahiyyatu lillahi, was-salawatu wat-tayyibatu, as-salamu ‘alayka, ayyuhan-nabiyyu wa rahmatullahi wa barakatuh, as-salamu ‘alayna wa ‘ala ‘ibadil-lahis-saliheen. Ashhadu an la ilaha illallahu wa ashhadu anna Muhammadan ‘abduhu wa Rasuluh.”
“तमाम इबादतें अल्लाह के लिए हैं और तमाम नमाजें और अच्छी बातें भी। आप पर सलाम हो ऐ अल्लाह के नबी और अल्लाह की रहमतें और उसकी बरकतें नाज़िल हो। हम पर सलाम हो और अल्लाह के सभी नेक बंदो पर। मैं गवाही देता हूँ की अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, और गवाही देता हूँ की मुहम्मद उसके बन्दे और रसूल हैं।”
मक़ामल इहसान: इबादत ऐसे करो जैसे आप अल्लाह (अज़्ज़ व जल) को देख रहे हो।
नबी ﷺ ने सिखाया है, “ओह, हम और उपर जा रहे हैं।” हमें मक़ामल इहसान ( धार्मिक श्रेष्ठता का स्थान) तक पहूँचना है जिसमें आपकी सारी इबादाह (पूजा) है ,जैसे आप अल्लाह (अज़्ज़ व जल) को देख रहे हो। और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) वर्णन दे रहा है, “मैं आकाश में नहीं हूँ, और मैं प्रथ्वी पर नहीं हूँ, अगर तुम मुझे ढूँढ रहे हो तो मैं ईमान रखने वाले के दिल में हूँ।” तो, जब क़िबलातुल ईमान मज़बूत होता है, तो वह मुहब्बत इतनी मज़बूत हो जाती है कि वह फिर वापस साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल में आजाती है। अब उनकी रोशनी नबी ﷺ की आत्मा के चारों ओर होती है। उनकी रोशनी साय्यदिन मुहम्मद ﷺ के दिल में प्रवेश कर रही है। मंज़िल उल क़ुरान (ज़हान से पवित्र क़ुरान प्रकट होता है) वहाँ जहाँ क़्ल्ब (दिल) का स्थान है, जो वास्तविक क़्ल्ब का स्थान है जहाँ से क़ुल बा तक जाता है और बा से, “बिस्मिल्लाहिर रहमान निर्रहीम”। (शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।) पवित्र क़ुरान का सारा ज्ञान एक फ़व्वारे जैसा निकलता है और वे वहाँ उस फ़व्वारे के पास अपनी आत्मा के साथ प्रार्थना करते हैं।
आप कल्पना कीजे कि आपकी दुनिया एक फ़व्वारा है जो उनकी आत्मा पर बह रहा है, जैसे वे नायऐग्रा फालस के नीचे बैठकर प्रार्थना कर रहे हैं। तो आप कल्पना कीजे कि एक पागल व्यक्ति नायऐग्रा फालस के नीचे बैठा है जिसके पानी के दबाव से वह ख़त्म हो सकता है। इस पानी का दबाव बहोत ज़्यादा है, ये उन्हें रोशन करता है। बरसता है, बरसता है, और बरसाता है ये उनके आत्मा पर सारे वस्तिकताएँ और प्रकाश और यह है बा का रहस्य। यह है क़्ल्ब का रहस्य। ठीक वहाँ, साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल में जिसे क़्ल्ब कहते हैं।
तो, अल्लाह(अज़्ज़ व जल) का क़ुल, “क़ाफ़, वल क़ुरानिल मजीद” आ रहा है लिसान (ज़ुबान) तक।
﴾ق ۚ وَالْقُرْآنِ الْمَجِيدِ ﴿١
50:1 – “Qaf, wal Quranil Majeed.” (Surat Qaf)
“क़ाफ़; गवाह है क़ुरान मजीद।” (अक्षर क़ाफ़, ५०:१)
वास्तविकताओं की ज़ुबान दिल (क़्ल्ब) है। क़्ल्ब क़्लब
यह है लिसान उसके क़्ल्ब से। यह ज़ुबान वास्तव में (शेख़ उनके दिल की ओर इशारा करते हैं) यहाँ है, यहाँ नहीं (सिर की ओर इशारा करते हैं)। शारीरिक नहीं। वास्तविकताओं की ज़ुबान वह है जो दिल बोलता है। तो, इसका मतलब यह है कि वे उस ख़ुल के स्थान पर हैं जहाँ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की ईज़्ज़ाह और शक्ती है जिसे कोई भी नहीं सम्भाल सकता है और जो शांतिपूर्ण है। “ख़ुलना, या नारु कूनी बरदन व सलामन।” “ख़ुल या नार। ख़ुल। ख़ुल,” अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की यह नार (दिव्य अग्नि) अब प्रवेश कर रही है साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल में। साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ इसे अब ठंडी और शांतिपूर्ण करते हैं।
﴾قُلْنَا يَا نَارُ كُونِي بَرْدًا وَسَلَامًا عَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ ﴿٦٩
21:69 – “Qulna ya Naaru, kuni Bardan wa Salaman ‘ala Ibrahim.” (Surat Al-Anbiya)
“हमने कहा, ए आग, ठंडी हो जा और सलामती बन जा इबराहेीम पर।”(अल अंबिया, २१:६९)
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम के सभी वास्तविकताओं का द्वार बा है।
अब सारी सृष्टि प्रकट होने लगेगी। वह बा, अब बन जाता है “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम” के सभी वास्तविकताओं का द्वार, और हर चीज़ प्रकट होती है क्योंकि अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की ईज़्ज़ाह और शक्ती की अग्नि और गर्मी टकराती है साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के वास्तविकता के ठंडक से। नतीजतन वह शांतिपूर्ण हो जाती है और एक निर्माण होता है, और सभी वास्तविकताओं का प्रकाश बहने लगता है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) सिखा रहा है, “मेरी प्रार्थना करो जैसे तुम मुझे देख रहे हो।”
قَالَ: فَأَخْبِرْنِي عَنْ الْإِحْسَانِ، قَالَ: أَنْ تَعْبُدَ اللَّهَ كَأَنَّك تَرَاهُ، فَإِنْ لَمْ تَكُنْ تَرَاهُ فَإِنَّهُ يَرَاك
Qala Fa akhberni ‘an al Ihsan.
Qala: An Ta’bud Allaha, Ka annaka tarahu, fa in lam takun tarahu fa innahu yarak.
अब मुझे पवित्र उत्तमता (इहसान) के बारे में बताओ।
नबी ﷺ ने जवाब दिया, “यह अल्लाह की इबादत/सेवा करना है जैसा कि आप उसे देखते/निहारते हैं, और यदि आप उसे नहीं देखते/निहारते हैं तो (जान लो) वो आपको अवश्य देख रहा है”। साय्यिदिना मुहम्मद (ﷺ)
अवलिया को धन्य किया जाता है वाहदतुल शूहूद से।
इसका मतलब है अल्लाह (अज़्ज़ व जल) अब आत्मा को उपर उठा रहा है साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल में जहाँ वे उस वास्तविकता में प्रवेश कर रहे हैं।वहाँ, उस वास्तविकता में, उनकी सलाह जिस में वे देखते हैं जो उन्हें अल्लाह (अज़्ज़ व जल) दिखाना चाह रहा है – जैसे कि एक आईना, एक खिड़की और एक काँच उस वास्तविकता की, जिसमें वे कभी एक नहीं हो सकते हैं मगर उसको देख सकते हैं। उनके पास वहदतुल वजूद (अस्तित्व में एकता) नहीं है जहाँ वे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) में मिल जाते हैं, अस्तग्फिरुल्लह ( अल्लाह अज़्ज़ व जल से क्षमा माँगो)। उन्हें दिया गया है शूहूद , वहदतुल शूहूद (साक्षीभाव में एकता)।
साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल से अवलियाल्लाह की आत्मा देख रही है जो कुछ दराजात अल्लाह (अज़्ज़ व जल) उन्हें प्रदान कर रहे हैं। तो इसका मतलब यह है कि उनके पास मक़ामूल इहसान के हक़ाएक़ का क़िबला है, पर तब भी लोग आकर क़ालीन हलातें हैं ( शेख़ एक किताब का उपयोग करके उसे कुछ डिग्री बदलकर बताते हैं) इस तरह और उस तरह और चंद्रमा के बारे में बहस करते हैं और भूल जाते हैं साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की वास्तविकता। तब हम जानते हैं कि प्र्थवि पर कठनाई क्यों आती है।
सांसारिक दुनिया की खोज में विचलित मत रहो।
लोगों को उनकी वास्तविकता तक वापस ले जाने के लिए कठिनाइयाँ आती हैं। आप विचलित हो गए अपने पैसे, दौलत, और अपनी शोहरत की तलाश में। वह सब चीज़ें जिस से दुनिया हमारा पीछा कर रही है और हम बन गए ज़ाहिरी। शैतान हमें मूर्ख बनाता है नेक कामों से, बुरे कर्मों से नहीं, और अब हम बनाना चाहते हैं मस्जिद अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के लिए।एक विश्वास करनेवाले को वह (शैतान) यह नहीं कहता, “चलो, कोई बुरा काम शुरू करते हैं।” वह कहता है, “आप क्यों नहीं यह नेक काम करते हैं?” आप अब उसके ॹाहिरी खोज में लग जाते हैं और मसरूफ हो जाते हैं उसकी शक्ती और उसका अधिकार पाने के लिए। आप भूल जाते हैं उस विश्वास और ईमान के स्थान को, जहाँ हमें ख़ुद से ज़्यादा साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ से प्रेम करना था।
मक़ामुल ईमान तक ग्रेजुएट करो और मक़ामुल इहसान तक पहुँचने का प्रयास करो।
हमें समझना था यह रोशनी की दुनिया को और उस में प्रवेश करना था उसके बरकतें पाने के लिए। हमारे इमाम, हमारे सुल्तान, हमारे बादशाह हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं मदिनातुल मुनव्वरा में। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) का हुक्म उनकी पवित्र आत्मा तक पहुँचता है और सब कुछ हो रहा है उनके हुक्म से, और ईशारात (निशानी) दिए जारहे हैं हर राष्ट्र को और कोई पहुँच के बाहर नहीं है। हम प्रार्थना करते हैं अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमारी समझ अधिक से अधिक खोले इन मलकूत (स्वर्गीय क्षेत्र) के सागर में और हम ज़्यादा से ज़्यादा इस रोशनी की दुनिया को समझें और उसमें प्रयास करें : इस बाहरी दुनिया छोड़कर मक़ामूल ईमान में ग्रेजुएट करें। इंशाल्लाह, मक़ामूल ईमान से मक़ामूल इहसान। इंशाल्लाह, साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की नज़र से और अवलियाल्लाह की बरकत से जो बह रही है इस दुनिया में, हमें हमारी कठिनाइयों से उभारे।
Subhana rabbika rabbal ‘izzati ‘amma yasifoon, wa salaamun ‘alal mursaleen, walhamdulillahi rabbil ‘aalameen. Bi hurmati Muhammad al-Mustafa wa bi siri Surat al-Fatiha.
इस सोहबाह का प्रतिलेखन करने में हमारे प्रतिलेखकों के लिए विशेष धन्यवाद।
सुहबा की मूल तारीख: मई २३, २०२०
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