
काबा और हज के गुप्त रहस्य।
मौलाना (क़) के वास्तविकताओं से, जैसा कि शेख़ नूरजान मीरअहमदी ने सिखाया है।
A’udhu Billahi Minash Shaitanir Rajeem
Bismillahir Rahmanir Raheem
पनाह माँगता हूँ मैं अल्लाह की शैतान मर्दूद से,
शुरू अल्लाह का नाम लेकर, जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
हमारी वार्षिक यात्रा ज़ुल हज में समाप्त होती है, इमाम माहदी (अलैहिस सलाम) के मार्गदर्शन में।
पवित्र हज (तीर्थयात्रा) के हक़ाएख (वास्तविकता) से और ‘अरफ़ा के वास्तविकता से, एक अनुस्मारक कि हर एक अपनी समझ के स्तर पर बोलते हैं और हमें उस औलियाल्लाह (संत) की समझ के स्तर तक पहुँचना है जहाँ वे चाहते हैं कि हम पहुँचें। एक बार जब वे संप्रेषित करते हैं, यदि आप नहीं समझते हैं, तब तक धैर्य रखें जब तक वह वरदान, उस दास पर न आ जाए। वे जो बोलते हैं उससे आपकी आत्मा सुशोभित होगी – क्योंकि हर आत्मा सुनती है, या रब्बी मैने यह हक़ीक़त सुनी है, मुझे उस हक़ीक़त से चाहिए। मैं बुनियादी समझ से नहीं चाहता, लेकिन मुझे इसकी हक़ाएक़ से चाहिए। हज के महीने में इस वास्तविकता की ओर १२ महीने की तीर्थ यात्रा है जो साधक हर साल ले रहा है। हर यात्रा मुहर्रम से शुरू होती है और ज़ुल हज में और १२ वीं वास्तविकता के तहत और अंतिम चंद्रमा के तहत, माहदी (अलैहिस सलाम) के मार्गदर्शन में समाप्त होती है। इसमें मुहम्मदन हादी की एक बड़ी ज़बरदस्त वास्तविकता है, जो मुहम्मदन वास्तविकता का सबसे अधिक निर्देशित है और वे सारे सृष्टि के ख़वास पर प्रदान करना चाहते हैं। यह आम नहीं है, लेकिन ये उस कुलीन वर्ग से हैं जिसे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उनकी आत्माओं को बनाया है।
मोमिन का दिल अल्लाह (अज़्ज़ व जल) का घर है।
और वे हमें याद दिलाते हैं कि, “क़ल्ब अल मोमिन बैतुल्लाह।”
قَلْبَ الْمُؤْمِنْ بَيْتُ الرَّبْ
“Qalb al mu’min baytur rabb.”
“ईमानवाले का दिल प्रभु का घर है।” (हदीस कुद्सी)
सब कुछ एक विज्ञान की तरह है,कि हम अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के घर के लिए जा रहे हैं और नबी ﷺ स्पष्ट करने के लिए आते हैं क्योंकि यह आदाब (शिष्टाचार) है जहाँ एक विज्ञान वर्ग की तरह, हमें समझने के लिए सभी सिद्धांतों को एक साथ रखना होगा। मैं अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के घर के लिए जा रहा हूँ और नबी ﷺ स्पष्ट करने के लिए आते हैं कि “क़ल्ब अल मोमिन बैतुल्लाह।” ईमानवाले का दिल अल्लाह (अज़्ज़ व जल) का घर है। आप अगर उस वास्तविकता तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं तो आपका दिल ख़ुद अल्लाह (अज़्ज़ व जल) का घर होना चाहिए।
अपने भीतर अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के घर को धो, साफ़ और शुद्ध करो।
इससे पहले कि आप अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के घर जाने के लिए हेजाज़ जाएँ, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) का घर पहले से ही आपके सीने में है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) वर्णन करता है, ‘फिर मेरे घर को साफ़ करो, मेरे घर को शुद्ध करो, मेरे घर को धो, मेरे घर की परिक्रमा करो।’
﴾أَن طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ ﴿١٢٥…
2:125 – “…An Tahhir baytee liTayifeena, wal ‘Aakifeena, wa ruka’is sujood.” (Surat Al-Baqarah)
“…तुम मेरे इस घर को तवाफ़ (परिक्रमा) करनेवालों और एतिकाफ करनेवालों के लिए और रुकु और सजदा [प्रार्थना] करनेवालों के लिए पाक/साफ़ रखो।” (सूरत अल बक़रा, २;१२५)
इसका मतलब है कि आपका शरीर आपके दिल का अनुसरण करें, न कि आपका दिल आपके शरीर का अनुसरण करें। यह संसार देह सुखों से भरा है। एक अनुस्मारक यह है कि आप दिल का अनुसरण करने के लिए हमेशा अधिक कठिन चुनाव करें क्योंकि अल्लाह (अज़्ज़ व जल) का घर इसके भीतर है। आत्मा इस दिल के भीतर है और प्रेम, इश्क़ और मुहब्बत दिल में हैं, दिमाग़ में नहीं। इसलिए वे आते हैं और हमें हमारे जीवन में सिखाते हैं: अपने दिल को धो लो, अपने दिल को काबा की तरह बनाओ ताकि जब निमंत्रण आता है, “समिना व अताना (सुनना और मानना) मैने सुना या रब्बी, लब्बैक और मैं आ रहा हूँ। लेकिन मैं आ रहा हूँ आपका घर मेरे भितर लेकर उस घर की महान वास्तविकता को देखने के लिए।
साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के लिए एकमात्र असली मोमिन हैं।
तब फिर औलियाल्लाह आकर हमें सिखाते हैं कि अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के लिए एकमात्र असली मोमिन (आस्तिक) सिर्फ़ साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ हैं। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) अगर किसी आस्तिक की परवाह करता है तो वो हैं पैग़म्बर ﷺ। हममें से बाक़ी सभी एक प्राणी के भीतर कोशिकाएँ हैं, एक बूँद। हमने पहले भी कहा है कि, यदि हम क़ुरान से कुछ भी पढ़ते हैं और उस समझ से हम इसमें ख़ुद को डालते हैं, तो उसके मा’ना, वह समझ पूरी तरह से अलग है। यदि आपने ऐसा रास्ता अपनाया है जिसमें आप कुछ भी नहीं हो, “ला इलाहा इल्ला अंता सुभानका, इन्नी कुंतु मिनज़ ज़ालिमीन,” कि मैं ख़ुद के लिए एक उत्पीड़क हूँ।या रब्बी , मैं कुछ भी नहीं हूँ।
﴾لَّا إِلَـٰهَ إِلَّا أَنتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ الظَّالِمِينَ ﴿٨٧…
21:87 – “…La ilaha illa anta Subhanaka, innee kuntu minazh zhalimeen.” (Surat Al-Anbiya)
“…तेरे सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं, महिमावान है तू: निस्संदेह मैं दोषकर्ता /उत्पीड़क हूँ!” (सूरत अल अंबिया, २१:८७)
पैग़म्बर ﷺ की अरवाह काबा को महिमा देती है।
अल्लाह (अज़्ज़ व जल) फिर कहता है, ‘हाँ, यदि आप सहमत हैं कि आप अपने आप पर अत्याचारी रहे हैं, तो हम आपको एक नजात और एक मुक्ति देंगे।’ इसलिए, जैसे ही उन्होंने आकर हमें कुछ भी न होना सिखाय, कुछ भी नहीं, उस वास्तविकता की सभी चाबियाँ आपकी शून्यता की समझ में खुल जाएँगी। या रब्बी अगर मैं कुछ भी नहीं हूँ, तो फिर वह कौन मोमिन (आस्तिक) है जिसकी बात आप कर रहे हो? किसके क़ल्ब (दिल) की बात आप कर रहे हो? और वे आते हैं और धीरे-धीरे बोलते हैं, ‘पैग़म्बर ﷺ।’ यह इसलिए कि आप उस घर के स्थान पर आ रहे हैं जिसके स्वामी साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ हैं। रब्बिल बैत, इस घर के मालिक; जिस चीज़ से घर को महिमा मिलती है, वह उसके पत्थर और कपड़े नहीं हैं जो वे उस पर डालते हैं, बल्कि जिसकी अरवाह और आत्मा उसके भीतर स्थित है। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) वर्णन कर रहा है कि अगर तुम मुझे ढूँढ रहे हो, “क़ुल इन कुंतुम तूहिब्बूना अल्लाह फत्ताबियूनि यूहबीबकुमु अल्लाह।”
﴾قُلْ إِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّوْنَ اللَّـهَ فَاتَّبِعُوْنِيْ يُحْبِبْكُمُ اللَّـهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوْبَكُمْ ۗ وَاللَّـهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴿٣١
3:31 – “Qul in kuntum tuhibbon Allaha fattabi’oni, yuhbibkumullahu wa yaghfir lakum dhunobakum wallahu Ghaforur Raheem.” (Surat Ali-Imran)
“कह दो, [ओ मुहम्मद], “यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।” (सूरत अल इमरान, ३:३१)
औलियाल्लाह हमारे जानकारी के मोतियों को तस्बीह की तरह पिरोते हैं।
और फिर मैं ग़फ़ूरूर रहीम हूँ; मैं तुम्हारे सारे पापों को क्षमा कर दूँगा। मेरी तलाश में आओ। लेकिन ये औलियाल्लाह तुम्हें उन मोतियों पर मार्गदर्शन करेंगे जिन्हें तुम तसबिह (जाप मला )की तरह एक साथ नहीं रख पा रहे हो। आपके जीवन के लिए वे सिर्फ़ जानकारी के मोतियों की तरह लगते हैं। लेकिन ये औलिया आते हैं और इन मोतियों को लेते हैं क्योंकि वे ख़ुद, वे हबलिल्लाह हैं, वे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के तार हैं। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उन्हें इन ज्ञानों से बाँधा और वे तसबिह बन गए। क्योंकि वे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की रस्सियाँ हैं, वे रस्सियाँ हैं जो साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ के दिल से निकलती हैं।
﴾وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّـهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا ۚ ﴿١٠٣
3:103 – “Wa’tasimo bihab lillahi jamee’an wa la tafarraqo…” (Surat Ali-Imran)
“और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो…” (सूरत अल इमरान, ३:१०३)
सभी नबियीन, सिद्दीक़ीन, शुहदा और सालिहीन काबा में हैं।
आओ, उस घर में आओ, आओ पैग़म्बर ﷺ के उस हक़ीक़त के रूबरू आओ। और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) वर्णन करता है कि यदि तुम मुझे ढूँढ रहे हो तो मैं नबियीन, सिद्दीक़ीन, शुहदा व सालिहीन के साथ हूँ।
﴾وَمَن يُطِعِ اللّهَ وَالرَّسُولَ فَأُوْلَـئِكَ مَعَ الَّذِينَ أَنْعَمَ اللّهُ عَلَيْهِم مِّنَ النَّبِيِّينَ وَالصِّدِّيقِينَ وَالشُّهَدَاء وَالصَّالِحِينَ وَحَسُنَ أُولَـئِكَ رَفِيقًا ﴿٦٩
4:69 – “Wa man yuti’ Allaha war Rasula faolayeka ma’al ladheena an’ama Allahu ‘alayhim minan Nabiyeena, was Siddiqeena, wash Shuhadai, was Saliheena wa hasuna olayeka rafeeqan.” (Surat An-Nisa)
“तथा जो अल्लाह और रसूल ﷺ की आज्ञा का अनुपालन करेंगे, वही उनके साथ होंगे, जिनपर अल्लाह ने कृपा/पुरस्कार किया है, अर्थात नबियों, सत्यवादियों, शहीदों (जो गवाही देते हैं) और सदाचारियों के साथ है और वे क्या ही अच्छे साथी हैं।” (सूरत अन निसा, ४:६९)
इसका मतलब है कि यदि नबी ﷺ की अरवाह (आत्मा) पवित्र काबा में है, तो सभी नबियीन , १२४,००० नबियों की आत्माएँ भी होनी चाहिए। हम हर साल कहते हैं, आप नहीं जानते किस वर्ष कोई कहेगा, ‘ओह, अब मुझे समझ में आया आप क्या कह रहे हैं।’ नबियीन (पैग़म्बर); १२४,००० सिद्दीक़ीन (सत्यवादी), १२४,००० शुहदा (गवाहों), १२४,००० सालिहीन (सदाचारि); उनकी सभी आत्माएँ जो उस प्रकाश से अधिक को समा नहीं सकती हैं। उनकी आत्माएँ हज के समय में स्थित है। वे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के लिए उस काबा में तीर्थ करते हैं। और काबा के अंदर से वे लोगों को तवाफ़ (परिक्रमा) करते हुए देख सकते हैं क्योंकि वे द्वार के लोग हैं।
वे तफक्कूर (चिंतन) के लोग हैं। ऊलुल बाब (द्वार के लोग), वे उस द्वार की ज़िम्मेदारी रखते हैं क्योंकि जब वह द्वार खुलता है, वह ज्ञान का शहर है क्योंकि वह ज्ञान का शहर साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की आत्मा है। निस्संदेह वे सब उस शहर के अंदर हैं, न की शहर के बाहर। ये औलिया (संत), वे सभी शहर के भीतर हैं और वे देख रहे हैं सभी लोगों को उस गाँव में घूमते हुए, चलते और घूमते हुए। लेकिन वे उस शहर के अंदर हैं, वे उस वास्तविकता के अंदर हैं।
७ तवाफ़ ७ नाम ७ स्वर्ग के लिए।
इसलिए तवाफ़ (परिक्रमा) के पहले स्तर पर, उन्हें ७ बार जाना होता है उनके ७ नाम और ७ स्वर्ग के लिए। और हर बार जब वे तवाफ़ करते हैं वे स्वीकार करते हैं, ‘या रब्बी, मैं यहाँ हूँ। मैं आया हूँ, मैं अपनी वस्तविकताओं में से एक के लिए आया हूँ और मैं आपकी परिक्रमा कर रहा हूँ ७ बार मेरे प्रत्येक नाम और उसके प्रत्येक स्वर्ग के लिए। मुझे वह नाम और उसकी वास्तविकता प्रदान करें, और प्रदान करें कि वह वास्तविकता मेरे अस्तित्व को आरास्ता करें। मुझे सामान्य से अपने ख़वास तक ले चलिए। मुझे मेरी शून्यता से अपने प्रेमपूर्ण आलिंगन में ले चलिए जिसमें आप अपनी वस्तविकताओं को प्रदान करना चाहते हैं।’ आप जब यह ज्ञान को सुनते हैं, आप उससे सुशोभित होते हैं। क्योंकि आपकी आत्मा कहेगी, ‘मैंने सुना, या रब्बी, मुझे मेरे ७ नामों से चाहिए। मैं चाहता हूँ कि मेरी अरवाह (आत्मा) यह काबा बनाए, मैं चाहता हूँ कि मेरी अरवाह यह तवाफ़ करें।’
और हर सलाह (प्रार्थना) एक हज है। हर इबादाह और हर उपासना जो हम कर रहे हैं वह एक हज है। और इस ज़ुल-हज के शक्तिशाली महीने में जब अल्लाह (अज़्ज़ व जल) खोलने जा रहा है – खोलने जा रहा है उन सभी वस्तविकताओं को जिसके लिए आपकी आत्मा मेरे पास यात्रा कर रही है।
ऊलुल अम्र अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के जीवित काबा हैं।
अल्लाह (अज़्ज़ व जल) क्यों चाहता है कि सभी लोग हज के लिए आएँ? वह इस ख़वास और इन कुलीन आत्माओं को जो कुछ दे रहा है उसके कारण वह चाहता है कि वे आएँ और इस तज्जल्ली (अभिव्यक्ति) के तबारक (आशीर्वाद) लें। और वह सब कुछ जो उन पर आता है अतिउल्लाह व अतिउर रसूल और वो सब जो भीतर हैं, वे हैं ऊलुल अम्र।
﴾ياأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُواللَّه وَأَطِيعُوٱلرَّسُولَ وَأُوْلِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ…﴿٥٩
4:59 – “Ya ayyu hal latheena amanoo Atiullaha wa atiur Rasula wa Ulil amre minkum…” (Surat An-Nisa)
“ऐ ईमान लानेवालो, अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल का कहना मानो और उनका भी कहना मानो जो तुममें अधिकारी लोग हैं।” (सूरत अन-निसा, ४:५९)
अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की आज्ञा मानने वाले अतिउल्लाह, साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की आत्मा हैं अंदर। जो रसूल ﷺ का पालन करते हैं वे चारों ओर हैं उनके जो आज्ञा का पालन करते है, वे जो ऊलुल अम्र का पालन करते हैं – वे सभी घूम रहे हैं और परिक्रमा कर रहे हैं। और पैग़म्बर ﷺ हैं जो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की वास्तविकता की परिक्रमा करते हैं, व इज़्ज़तुल्लाह इज़्ज़तुर रसूल व इज़्ज़तुल मूमिनींन। और उन इज़्ज़तुल मुमिनींन से, वह फैलता है उन सभी लोगों में जो हज कर रहे हैं। वे जहाँ कहीं भी हो, उनके उपस्थिति में हज हो रहा है। उनके उपस्थिति में हमेशा एक काबा है। वे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के जीवित काबा हैं और उनके दिल से और उनकी वास्तविकता से तजल्लियाँ गतिमान हैं।
﴾وَلِلَّهِ الْعِزَّةُ وَلِرَسُولِهِ وَلِلْمُؤْمِنِينَ… ﴿٨…
63:8 – “…Wa Lillahil ‘izzatu wa li Rasuli hi wa lil Mumineen…” (Surat Al-Munafiqoon)
“…इज़्ज़त तो ख़ास अल्लाह और उसके रसूल और मोमिनीन के लिए है…” (सूरत अल मुनाफ़िक़ू, ६३:८)
सफ़ा ए मरवा और वस्तविकताओं के ७ झरने।
आप आपके तवाफ़ के बाद जाते हैं आपके सफ़ा ए मरवा के लिए। उसके बाद आप ७ बार जाते हैं आपके दिल के भीतर के ७ झरने खोलने के लिए। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) आपके वस्तविकताओं से आपको सुशोभित करना चाहता है, आपको कौसर के सागर से सुशोभित करना चाहता है, और आपके ७वें सफ़ा ए मरवा के समय पर आपके जीवन का मतलब है मोमिन के दिल में वास्तविकता के इन ७ झरणो को खोलना। ये हैं आपके दिल के ७ लताएफ़ (सूक्ष्म ऊर्जा बिन्दु)। वे जो ५ के बारे में बात करते हैं – फ़ना (विनाश) और बक़ा।
इनमें से प्रत्येक झरने खुले होने चाहिए, इसलिए जब वे सफ़ा ए मरवा करते हैं; वे एक तरफ़ पहोंच रहे हैं और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) से मांग रहे हैं, ‘या रब्बी, उन झरणो से खोलें और जब तक वे ७वें पर पहुँचते हैं और साय्यिदतिना हगार (अलैहिस्स सलाम) की ज़मीन पर मारते हैं और कहते हैं, ‘या रब्बी, मुझे नजात (मुक्ति) दें और ज़मज़म को प्रकट होने के लिए प्रदान करें।’ ज़मज़म फ़िदरतुल इस्लाम है जब अल्लाह (अज़्ज़ व जल) कहता है कि, ‘तुमने जो बुरे चरित्र वाले व्यक्ति के रूप में किया है, मैं तुम्हें अपना रिजाल जैसा बनाऊँगा जो निर्दोष और शुद्ध हैं। निर्दोष और शुद्ध, मैं तुम्हें पुनर्जन्म में निर्दोष और शुद्ध बनाऊँगा। और तुम्हारा दिल ज़मज़म का फ़व्वारा होगा और ज़मज़म का स्रोत कौसर है।’ इसलिए, वे औलियाल्लाह को “ज़मज़मी” बुलाते हैं। क्योनि जब भी आप उनके सामने खाते और पीते हैं, वे सारी वास्तविकताएँ उन दासों को सुशोभित करती है और उन सब पर भी जो उनके क्षेत्र में या उनके आसपास हैं।
अच्छी संगति रखो – वे हमें सिखाते हैं वह माँगो जो हम नहीं जानते हैं।
सफ़ा ए मरवा से अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम) की युद्ध का वर्णन करता है। जमारात और तीन शैतान (दुर्जन) – कि शैतानों में बड़ा, उससे बड़ा और सबसे बड़ा शैतान। जब आप अपने ७ नमों और ७ वस्तविकताओं तक पहुँचते हैं, भले ही आप इसके लिए माँगे हो, अगर आप इसे नहीं समझे हैं, तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वे परवाह नहीं कर रहे हैं यदि आप इसे समझते हैं या आप इसे प्राप्त करते हैं या नहीं, लेकिन वे चाहते है कि आप यह जानें कि क्या माँगना है। आप वह नहीं माँग सकते जो आप नहीं जानते।
बोलो, ‘या रब्बी मुझे मेरे तवाफ़ की वास्तविकता से, मेरे ७ नाम से दान दो। या रब्बी, मेरे ७ नाम इस दुनिया (सामग्री दुनिया) में मेरा समर्थन और सहायता करें। और इस सफ़ा ए मरवा पर वे जो जा रहे हैं, या रब्बी, इन ७ झरनों को मेरे अस्तित्व में, मेरी वास्तविकता में खोलें और मेरे दिल को ज़मज़म की तरह उमड़ कर बहने दें। जो कोई भी इस से पिता है, उससे वह धन्य हो, ठीक हो और स्वस्थ हो – उन्हें उससे उनका इस्लाम मिले, उनका ईमान (आस्था) और उनका मक़ामुल ईमान (आस्था का स्थान) मिले।’ बस इतना ही पूछना काफ़ी है क्योंकि आप नबियीन, सिद्दीक़ीन, शुहदा व सालिहीन के साथ हैं (क़ुरान, ४:६९)। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने कहा है, ‘यह सबसे अच्छी संगति है।’ लेकिन हम इन महान हस्तियों के साथ हैं जो हमें सिखाते हैं कि हमें क्या माँगना है।
साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम) अपने बलिदान में सबसे उदार थे।
वे फिर कहते हैं कि आप अपने जमारात के लिए जा रहे हैं क्योंकि आपने यह सब वास्तविकताएँ की है, लेकिन पूरा हज यही ‘अरफ़ात है और ‘अरफ़ात का महत्व है। फिर साय्यिदिना इब्राहीम आ कर हमें सिखाते हैं कि, आपने जो कुछ किया, मैं उदारता के बारे में हूँ। मेरी वे अच्छी विशेषताएँ हैं। इसका मतलब है कि आप अब ईमान के पिता के पास जा रहे हैं और साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम) हमें सिखा रहे हैं कि उन्हें एक दिव्य दर्शन हुवा जहाँ मुझे बच्चे का बलिदान करना है और उन्होंने कहा, ‘नहीं, मैं नहीं कर सकता।’ कहा, ‘मैं वापस सोने चला गया। नहीं, मैं नहीं कर सकता। तीसरी बार यह मुझे करना है और मैंने अपने सारे जीवन में अल्लाह (अज़्ज़ व जल) से प्रार्थना की थी और वह थी एक बच्चे के लिए। और बाक़ी सब कुछ मैने अल्लाह (अज़्ज़ व जल) को दे दिया।’ वो सब कुछ ले लें और कुछ भी ले लें, वे सबसे उदार थे, साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम)।
शैतान हमारे तीन इंद्रियों को बंद रखने का प्रयास करता है।
और परिक्ष आई और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) वर्णन कर रहा है, उस सब जिस के साथ आपको सुशोभित किया गया है, आपका सबसे बड़ा युद्ध अब शैतान के ख़िलाफ़ है और तीन को खोलना का। ‘अर्श (सिंहासन) की इस वास्तविकता के बीच आप पर ताले लगे हुए हैं। ताले लगे हैं, आपके कानो पर ताले लगे हैं, आपके आँख पर ताले लगे हैं,- आपकी रूहानी दृष्टि, और एक क़िस्वाह है जो आपको आपकी वास्तविकता से छिपा रहा है।
और शैतान का काम है इन तीन तालों से बाधा डालना, कि कभी भी, आपकी सुनवाई कभी ना खोलें और इसलिए हर कोई हर समय ख़राब संगीत सुन रहा है। ताकि वे सुन ना सकें उनकी आवाज़ जो उन्हें बता रही है अल्लाह (अज़्ज़ व जल) क्या चाहता है। नहीं चाहता है कि हम अपनी वास्तविकता देखें इसलिए वह हमें हर प्रकार की दृष्टि और फ़िल्मों में व्यस्त रखता है ताकि हम कभी भी बैठकर चिंतन न करें और अपनी आँखें बंद कर के कहें, ‘मेरी वास्तविकता क्या है? मेरी आत्मा की दृष्टि क्या है? मेरी आत्मा मुझे क्या सिखाना चाहती है? मेरी आत्मा मुझसे क्या बात करना चाहती है?’ मुझे सिखाएँ और अगर मैं पर्याप्त सुनूँ और इसकी शिक्षा सुनूँ, तो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) इसके अंधेपन के परदे को उठाना शुरू कर देगा और वे बन जाएँगे अहलुल बसिराह (आध्यात्मिक दृष्टि के लोग)
जो स्वयं को जानता है, वह अपने स्वामी को जानता है।
इसलिए, उन्होंने तवाफ़ किया और उन्होंने अपने वास्तविकताएँ की और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उन्हें उनके ७ नामों से सुशोभित किया। ये लोग जिनकी हम बात कर रहे हैं वे ख़ुद को पहचानते हैं। पैग़म्बर ﷺ ने कहा है, ‘जब तक आप स्वयं को नहीं जानते, तब तक आप अल्लाह (अज़्ज़ व जल) को नहीं जानते और यदि आप स्वयं को नहीं जानते, तो आप अल्लाह (अज़्ज़ व जल) को नहीं जानते।’
مَنْ عَرَفَ نَفْسَهْ فَقَدْ عَرَفَ رَبَّهُ
“Man ‘arafa nafsahu faqad ‘arafa Rabbahu.”
“जो स्वयं को जानता है, अपने स्वामी को जानता है।” पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ
वे स्वयं को जानते हैं। वे जानते हैं अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उन्हें उनके नाम और उनके वस्तविकताओं से कैसे सुशोभित किया है। वे ७ झरनों को समझ गए और वह सब जिससे अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने उनको सुशोभित किया और उनके लिए खोला है।
मक़ामुल इस्लाम – साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम) अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की इच्छा के अधीन हैं।
और फिर उनका सबसे बड़ा युद्ध शैतान के साथ था। साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम) आकर सिखाते हैं कि शैतान की पहली कड़ी पर वह नहीं सुनना है जो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) आपसे कह रहा है। कहो, ‘यह नहीं हो सकता।’ वह कहता है, ‘नहीं, यही होगा।’ कहो, ‘यह नहीं हो सकता।’ और उस वास्तविकता की पूरी अवधारणा यह थी कि शरीर जो कुछ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) चाहता है उसके अधीन नहीं होने वाला है। और यही इस्लाम है। और इस्लाम को अधीन होना है। जैसे ही उन्होंने उस शैतान से लड़ाई की कि मैं वह कैसे करूँ जो वो मुझसे करने के लिए कह रहे हैं चाहे वह लोकप्रिय हो या नहीं?
मक़ामुल ईमान – साय्यिदतिना हगर (अलैहिस सलाम) सुनते हैं और मानते हैं।
फिर सितना हगर (अलैहिस सलाम) मक़ामुल ईमान का प्रतिनिधित्व करती हैं क्योंकि उन्होंने रसूल की बात सुनी। शैतान उनके पास आया और कहा कि क्या आप जानते हैं रसूल क्या करने वाले हैं? वह कैसे आपके बच्चे की बलि देने जा रहे हैं? उन्होंने [साय्यिदतिना हगर अलैहिस सलाम] कहा, ‘उन्हें जो भी आदेश दिया गया है मैं समिना व अताना के लोगों में से हूँ।’ क्योंकि अब हम आगे बढ़ रहे हैं जानने के लिए कि साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) कौन हैं। क्यों अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ऐसे हस्ती से सबसे पवित्र और सबसे सिद्ध सृष्टि को बाहर लाया?
साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम) से नूर मुहम्मद ﷺ प्रकट होने वाला है। क्योंकि हज की सारी वास्तविकता साय्यिदिना इब्राहीम (अलैहिस सलाम) की वास्तविकता में सुशोभित होगी। क्योंकि राज़ बड़ी शख़्सियत में नहीं होता। राज़ किसी छोटी सी बात में हो सकता है जिसे लोग अनदेखा कर देते हैं।वह बड़ी शख़्सियत को आदेश मिला – अपनी संपत्ति क़ुर्बान करो। इस प्रकार इसके साथ संघर्ष किया , इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) की तरह नहीं। उन्होंने अपना पूरा परिवार क़ुर्बान कर दिया। पत्नी के पास गए और पत्नी ने कहा, ‘समिना व अताना। कि उन्हें जो करने का आदेश दिया गया है, हम उसका पालन कर रहे हैं।’
मज़बूत ईमान प्राप्त करने के लिए अपनी आस्था में दृढ़ रहें।
इसलिए, इसका मतलब यह है कि आपके ईमान का स्तर, यदि आपका शरीर समर्पण कर रहा है, आपका ईमान मज़बूत होगा। अगर आप सच में समर्पण कर रहे हैं तो आपका ईमान मज़बूत होगा। औलियाल्लाह का ईमान पहाड़ों की तरह है। आप कल्पना नहीं कर सकते किस प्रकार के तूफ़ान उन पर आ रहे हैं, उनका ईमान मज़बूत होगा।
अब थोड़ा सा अगर इंटरनेट पर पागलपन होता है और लोग बोलने लगते है, ‘क्या चल रहा है? क्या चल रहा है? क्या चल रहा है?’ प्रश्न यह होना चाहिए कि आप इस तरह हवा में क्यों उड़ रहे हो? आपका ईमान कमज़ोर होगा। हो सकता है आपकी प्रथाएँ मज़बूत नहीं हैं। अगर आपकी प्रथाएँ मज़बूत हैं, आपका संबंध मज़बूत है, तो आप जो कुछ भी कर रहे हैं वहाँ, ‘क्या चल रहा है?’ नहीं हो सकता आपके लिए। आपका शरीर, आपका इस्लाम इस्तेक़ाम है, प्र्थ्वी में जड़ा हुआ है, यह गतिमान नहीं है।
मक़ामुल इहसान – साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) की युवा मासूमियत उनके आज्ञानुकूलता को पूरा करती है।
अगर यह आपकी हालत है, तो आप सितना हगर (अलैहिस सलाम) जैसे है जहाँ आपका ईमान उत्तम है। उन्होंने कहा, ‘जो भी आदेश उन्हें दिया गया है, हम आपके साथ हैं,’ और शैतान पर थूको। और सबसे सिद्ध, उन सब में सबसे सिद्ध साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) हैं। जब शरीर थर्रा रहा था और माँ परेशान थीं, मक़ामुल इहसान (नैतिक उत्तमता का स्थान) आ कर शरीर से कहा, ‘चिंता मत करो।’ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने जो तुम्हें आदेश दिया है, उसके साथ तुम मुझे धैर्यवान पाओगे। इसलिए मक़ामुल इहसान हमको बचा लेगा। इसलिए अल्लाह (अज़्ज़ व जल) चाहता है कि इन वस्तविकताओं को खोला जाए।
अगर आपके इस्लाम की परिक्ष होने वाली है, आपकी अधीनता, जो सुन रहे हैं और मुस्लिम नहीं हैं, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। आपके प्रथाओं में जो कुछ भी आपकी अधीनता है, यदि वे मज़बूत और सच्चे हैं और सत्य पर आधारित हैं, तो आपका ईमान पहाड़ की तरह मज़बूत होना चाहिए। यदि आपकी प्रथाएँ मज़बूत है, आपका ईमान मज़बूत है, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) कुछ नया बनाता है जो आपसे पैदा होता है, मक़ामुल इहसान। मक़ामुल इहसान युवा के रूप में आता है, युवा की मासूमियत में। यह फ़ूतूव्वा (शिष्टता) का तरीक़ा है। यह इमाम अली (अलैहिस सलाम) का तरीक़ा है, कि आपकी जवानी की मासूमियत आप से आगे निकलनी चाहिए। आपकी जवानी की मासूमियत अपनी तलवार निकालकर आपके शरीर को सिखाएगी, ‘अधीन हो जाओ उस से जो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) के पास है’ – काँपना बंद करो!
‘अरफ़ात साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) की वास्तविकता है।
यदि आपके पास मक़ामुल इहसान नहीं है, तो अवश्य ही आपका शरीर भाग रहा है और इंटरनेट पर सभी को कॉल कर रहा है, ‘क्या हो रहा है? क्या हो रहा है? क्या हो रहा है?’ यह इसलिए कि उन में मज़बूती नहीं है। जब शरीर अपने प्रथाओं में मज़बूत है, वह समझ गया है; यह पूरा तरीक़ा तफ़क्कूर पर आधारित है। इन में से कोई भी चीज़ नहीं खुलेगी आपकी आँखों से आपके शारीरिक आँखों से और न ही इंटरनेट पर देखने से। यह खुलता है आपके बैठने से और तफ़क्कूर और चिंतन करने से, आप एक व्यक्ति और एक वास्तविकता हैं और आप अपनी आत्मा की वास्तविकता से चाहते हैं। जब वह खुलता है, उनका शरीर उनके विश्वास में दृढ़ होता है। उनका ईमान उनके विश्वास में दृढ़ होता है। उनका मक़ामुल इहसान आएगा।
फिर साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) आ कर उन्हें कहेंगे, ‘चिंता मत करो, धैर्य रखो।’ अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने जो आदेश दिया है, मैं उसमें सब्र रखूँगा। अब आप क़ुर्बान (बलिदान) के लिए जाओ। इसलिए अब हम समझ गए हैं की यह यात्रा एक पहाड़ समान है। आपका इस्लाम, शैतान आकर आप पर प्रहार करेगा और आपके प्रथाओं को कमज़ोर करेगा। आपका ईमान कमज़ोर होने के लिए वह आपके प्रथाओं को मारने जा रहा है। आप उनपर क़ाबू पाते हैं, आप शिखर पर हैं। आप जबल रहमा की चोटी पर हैं और यही ‘अरफ़ात है। इसलिए वहाँ शिखर पर एक छोटा पत्थर है, वह साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) हैं। आपका मक़ामुल इहसान आपको बचा लेगा यदि आप उस वास्तविकता की ओर पहुँचते हैं। और वह वास्तविकता, “फ़सल्ली ली रब्बिका वनहर”; यही है कौसरी वास्तविकता।
﴾إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ الْكَوْثَرَ ﴿١﴾ فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَانْحَرْ ﴿٢﴾ إِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْأَبْتَرُ ﴿٣
108:1-3 – “Inna ‘atayna kal kawthar. (1) Fasali li rabbika wanhar. (2) Inna shani-aka huwal abtar. (3)” (Surat Al-Kawthar)
“(ऐ रसूल) हमने तुमको कौसर अता किया। (१) तो तुम अपने परवरदिगार की नमाज़ पढ़ा करो और क़ुरबानी दिया करो। (२) बेशक तुम्हारा जो वैरी है वही जड़कटा है। (३)” (सूरत अल-कौसर, १०८:१-३)
ज़मज़म साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) की कौसरी आत्मा के लिए खोला गया।
ये वे लोग नहीं जो सदक़ा (दान) देते हैं। ये वो लोग नहीं जो ज़कात (दान) करते है। मगर ये वो लोग हैं जिनका वर्णन अल्लाह (अज़्ज़ व जल) करता है, “इन्ना आतैना कल कौसर। फ़सल्ली ली रब्बिका वनहर।” (पवित्र क़ुरान, १०८:१-२) उन्होंने अपने स्वामी से प्रार्थना की और उन्होंने बलिदान का जीवन व्यतीत किया। इसके परिणामस्वरूप, यह शुरुआत है कौसरी की। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) को क्यों कौसरी कह कर वर्णित कर रहा है? इसलिए कि उनकी आत्मा से साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की वास्तविकता आ रही है और अपने कुलीन वंश के कारण वह ज़मज़म से पी रहे होंगे। हम उनकी आत्मा के लिए ज़मज़म से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करते हैं।
इसलिए साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) को देने के लिए उनकी माँ के लिए अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने ज़मज़म खोल दिया। अन्य नबियों के लिए नहीं, बल्कि साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) को देने के लिए। यह हक़ीक़त ही कौसर की हक़ीक़त है, सिर्फ़ ज़मज़म पीती है। इसलिए इन सभी कौसरी लोगों को अल्लाह (अज़्ज़ व जल) सिर्फ़ ज़मज़म पीने के लिए देता है। उनकी आत्माओं की कुलीनता के कारण वे स्वर्ग के ख़वास हैं। और उनकी आत्माओं को पोषित और उस वास्तविकता में नहाया जाता है।
अपने प्रभु से प्रार्थना करो और बलिदान का जीवन जीयो।
और साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) सिखाने आ रहे हैं उस वास्तविकता के साथ यदि आप समझ गए हैं। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने तब वर्णन किया कि जब साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) बलिदान करने वाले थे, ‘हमने उन्हें एक ज़बरदस्त छुड़ौती के साथ फिरौती दी।’
﴾وَفَدَيْنَاهُ بِذِبْحٍ عَظِيمٍ ﴿١٠٧
37:107 – “Wa fadainaahu bizibhin ‘azeem” (Surat As-Saffat)
“और हमने उसे (बेटे को) एक बड़ी क़ुरबानी के बदले में छुड़ा लिया।” (सूरत अस -सफ़्फ़ात, ३७:१०७)
इसका मतलब है कि इस मक़ाम (स्थान) और यह सारा हज आपके क़ुर्बान पर आधारित है। लोग हर प्रकार के प्रथाएँ कर रहे हैं और सोच रहे हैं कि वे प्रथाएँ उनको बचा लेगी और उनको उस वास्तविकता के ख़रीब ले जाएगी। और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने कहा, ‘नहीं, नहीं, नहीं, जो मैं वर्णन कर रहा हूँ उस पर वापस जाओ।’ उस लड़के की बलि की पूरी सच्चाई और यह कि वह मक़ामुल इहसान का प्रतिनिधित्व करता है और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) ने कहा बलिदान की कोई आवश्यकता नहीं है। इसका मतलब है कि तुम्हें अपने आप को पूरी तरह मुझे देने की ज़रूरत नहीं है, मैं तुम्हें फिरौती देने जा रहा हूँ। मैं वह लेने जा रहा हूँ जो तुम पर बक़ाया है और मैं इसके बदले तुम्हें एक बकरी दूँगा। इसका मतलब है कि जब आप क़ुर्बान देते हैं, तो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) आपकी हर कठिनाई, हर तकलीफ़, हर दुष्टता को धो देगा जो हम अपने आप पर डालते हैं और वह सब जो हम हासिल नहीं कर पाए जो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) चाहता था की हम हासिल करें।
लेकिन कम से कम आप तो जानते ही हैं कि साय्यिदिना इस्माईल (अलैहिस सलाम) की हक़ीक़त क्या है या कम से कम उस समझ की ओर। किसी भी पैग़म्बर को समझना असम्भव है। लेकिन उस वास्तविकता की समझ की ओर कि, ‘या रब्बी, हम माँग रहे हैं कि हम वहाँ तक पहुँचें और साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की मुहब्बत तक।’ और फिर कैसे “फ़सल्ली ली रब्बिका” (पवित्र क़ुरान, १०८:२), ऐसा जीवन जिएँ जिसमें आप बलिदान करते हैं। बलिदान अपने आप से, अपने समय से, अपनी क्षमता से, अपने प्रयासों से।
क़ुर्बान के भीतर दान मौजूद है लेकिन दान के भीतर क़ुर्बान मौजूद नहीं है।
सेवा नहीं करने में व्यस्त मत रहो क्योंकि बाक़ी जो कुछ आप कर रहे हैं वह पूरी तरह से बेकार और बकवास है। यह आपको स्वर्ग में नहीं ले जाएगा। आपको पता है, लोग दौलत कमा रहे हैं और अल्लाह (अज़्ज़ व जल) की राह में कौड़ी दे रहे हैं। वे चोकलेट बार की तरह देते हैं और कहते हैं अच्छा है, इसका आनंद लो; मुझे आशा है कि आप इससे बहुत कुछ हासिल करेंगे। एक चोकलेट बार। और आप सोचते हैं की आपका धन आपको बचा लेगा? या यह ज़रिया बनेगा आपकी सज़ा का जो अल्लाह (अज़्ज़ व जल) आपको देगा और फिर ये कौसरी आ कर सिखा रहे हैं, ‘नहीं, नहीं, पूरे हज का शिखर क़ुर्बान था।’ और शायद कुछ लोग सोचते हैं कि मैं दान देता हूँ, मुझे क़ुर्बान देने की ज़रूरत नहीं है, नहीं, नहीं, नहीं।
दान क़ुर्बान के भीतर है, लेकिन क़ुर्बान दान के भीतर नहीं है। ये २ अलग वास्तविकताएँ है। यह धर्मार्थ है जब आप मांस के लिए पैसे देते हैं लेकिन उस मांस को बलि देनी पड़ती है। क्यों? इसलिए कि वह उस वास्तविकता के स्थान पर है, कि या रब्बी, मैं पहुँच नहीं रहा हूँ, मेरे पाप मुझ से आगे बढ़ गए हैं। उस प्राणी के ख़ून से, वह प्राणी अपनी वास्तविकता तक पहुँचेगा और मेरे और आपके लिए अपनी बलि देगा। वह प्राणी कह रहा है, ‘फ़सल्ली ली रब्बिका,’ वह वही कर रहा है। तो वह आपसे कुछ माँग नहीं रहा है, कुछ नहीं। यह अल्लाह (अज़्ज़ व जल) से सहमत है। आप इस बनी आदम से प्यार करते हो? मैं ख़ुद को बलिदान कर दूँगा ताकि वे अपना मुक़ाम हासिल कर सके। मैं उनका बोझ उठा लूँगा और वह प्राणी सारा बोझ उठाकर आपको मक़ाम और स्थान दे देता है।
स्वर्गीय नज़र पाने के लिए अपने प्रेम को उस चीज़ में डालें जिस पर आप विश्वास करते हैं।
हम प्रार्थना करते हैं कि अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें सेवा के लिए सदा प्रेरित करता रहे।इन मुश्किल के दिनों में, यही एकमात्र सुरक्षा है। यही एकमात्र तरीक़ा है साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की नज़र (निगाह) को पाने का। लेख पोस्ट न करें। राजनीतिक बयान पोस्ट न करें। ऐसा कुछ भी न पोस्ट करें जिससे आप को जहान्नम (नरक की आग) में जाने का टिकट मिले। यदि आप कुछ करना चाहते हैं, तो आप आपके शेख़ के लेख पोस्ट करें क्योंकि आप उनके ध्वज के पीछे हैं। वे ठीक ठीक जानते है उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
राजनीतिक मुद्दों से दूर रहिए। ख़िदमत में ख़ुद को व्यस्त रखें। सेवा करें – गाएँ, चर्चा करें, खेलें, पढ़ें, नबी ﷺ के रास्ते में कुछ करें। क्यों? इसलिए की साय्यिदिना मुहम्मद ﷺ की नज़र आप पर हो। आप आपकी सलाह (प्रार्थना) पढ़ने से उनकी नज़र आप पर नहीं पढ़ती। यह तो आपको करना था। आपके अमल (कर्मों) से उनकी नज़र नहीं मिलती। लेकिन जब आप मुहब्बत से कुछ करते हैं, अब आपके पास उनकी दृष्टि है और उनकी निगाह आप पर है।आप अपने प्यार को उस चीज़ में डाल रहे हैं जिस पर आप विश्वास करते हैं। आप अपनी मुहब्बत में व्यस्त रहें और हम सभी फितना (अव्यवस्था) और कठिनाइयों से सुरक्षित रहेंगे, इंशाल्लाह।
विरोध न करें – सब कुछ साय्यिदिना माहदी (अलैहिस सलाम) के आगमन के लिए है।
जब लोग उस समय को नहीं समझते हैं जिसमें हम रहते हैं, तो विरोध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। सब कुछ ठीक उसी तरह है जैसा अल्लाह (अज़्ज़ व जल) चाहता है साय्यिदिना माहदी (अलैहिस सलाम) के आगमन के लिए। कहीं जाने की, किसी से कुछ कहने की, या किसी बात पर ग़ुस्सा करने की ज़रूरत नहीं है। आप को बस इतना करना है कि छुपना है। अपना प्यार बनाए रखें और रास्ते से दूर रहें, इंशाल्लाह। अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें सुरक्षित रखे।
और जो ऑनलाइन देख रहे हैं, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) आपको आशीर्वाद दें, आपको सुशोभित करे, हम सभी से अरफ़ात स्वीकार करें, अल्लाह (अज़्ज़ व जल) हमें अरफ़ात की रोशनी से सुशोभित करें, हमारा हज स्वीकार करें, हज की वास्तविकताएँ हम पर हो और हमें ईद का आशीर्वाद दें, इंशाल्लाह।
Subhana rabbika rabbal ‘izzati ‘amma yasifoon, wa salaamun ‘alal mursaleen, walhamdulillahi rabbil ‘aalameen. Bi hurmati Muhammad al-Mustafa wa bi siri Surat al-Fatiha.
इस सोहबाह का प्रतिलेखन करने में हमारे प्रतिलेखकों के लिए विशेष धन्यवाद।
सुहबा की मूल तारीख: अगस्त ११,२०१९
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